अमेरिकन बार एसोसिएशन के सेंटर फ़ॉर ह्यूमन राइट्स ने जामिया की शोध छात्रा सफ़ूरा ज़रग़र की
गिरफ़्तारी और उनके जेल में पड़े रहने पर गहरी आपत्ति जताई है और भारत की आलोचना की है, संस्था ने पूरे
मामले को अंतरराष्ट्रीय विधि मानकों और भारत ने जिन अंतरराष्ट्रीय समझौतों पर दस्तख़त किए हैं, उनका
उल्लंघन माना है, उसने कहा है, ‘मुक़दमा के पहले गिरफ़्तारी कुछ ख़ास मामलों में ही वैध हैं और ऐसा नहीं
लगता है कि ज़रगर के मामले में इस तरह की कोई बात है,
इस संस्था ने यह भी कहा है कि ‘इंटरनेशनल कॉनवीनेंट ऑन सिविल एंड पोलिटिकल राइट्स यह साफ़ कहता
है कि यह सामान्य नियम नहीं होना चाहिए कि मुक़दमा शुरू होने के पहले ही किसी को जेल में डाल दिया
जाए,’ उन पर दिल्ली दंगों की साजिश रचने का आरोप लगाया गया है, दिल्ली के पटियाला हाउस कोर्ट ने
पिछले सप्ताह उनकी ज़मानत याचिका खारिज कर दी, ज़रगर ने नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़
आन्दोलन में भाग लिया था, लेकिन उन्हें अनलॉफुल एक्विविटीज़ प्रीवेन्शन एक्ट के तहत गिरफ़्तार किया गया है।
सफ़ूरा के गर्भवती होने, ख़राब स्वास्थ्य और कोरोना फैलने की आशंका के मद्देनज़र मजिस्ट्रेट ने उन्हें ज़मानत
दे दी, लेकिन उसके बाद पुलिस ने दिल्ली दंगों की साजिश रचने का आरोप लगा कर यूएपीए की धाराएं लगा
दीं, अमेरिकी संस्थान ने यह भी कहा है कि ज़रगर के गर्भवती होने की स्थिति को ध्यान में रखा जाना चाहिए,
महिला क़ैदियों के साथ होने वाले व्यवहार पर संयुक्त राष्ट्र के नियम भी साफ कहते हैं कि किसी गर्भवती महिला
के जेल में रखने के बजाय दूसरे उपाय अपनाए जाने चाहिए ।
व्यतिगत तौर पर इस बात से बिल्कुल इत्तेफ़ाक़ रखता हूँ कि गर्भवती होना स्त्रीत्व की पहचान है, ना कि बेगुनाही की..
किन्तु यदि मानवीय संवेदनाओं सहित देखा जाये तो किसी तत्व का विरोध करना पूर्णतयः जायज है और मेरी
समझ में विरोध जताने का सर्वश्रेष्ठ उपाय है धरना …. वर्ना आम तौर पर हम लोगों ने विरोध प्रदर्शन की आड़ में.. लोगों की हिंसक प्रवत्ति को भी भली भांति देखा है ।।
अतः सफोरा पर लगे आरोप इतने संगीन प्रतीत नही होते, कि उन्हें गैर जमानती की श्रेणी में रखा जाये.. हाँ,
अगर उस पर लगे आरोप सही साबित हों.. तो मैं कठोरतम सजा का समर्थक भी हूँ.. लेकिन कोई भी सभ्य
समाज इसका समर्थन नही कर सकता कि किसी और के दोष की सजा, किसी अजन्मे को नसीब हो।
मान लीजिये अगर कारावास में किसी उपचारिक अव्यवस्था के चलते उस गर्भ के साथ कोई अनहोनी घटित हो
जाये.. और बाद में न्यायालय, सफोरा को बाइज़्ज़त बरी कर दे.. तो उस परिपेक्ष्य में जवाबदेह कौन होगा ???