अस्पताल की दुर्गति और कोरोना इलाज में नाकामी को लेकर गुजरात सरकार की आलोचना करने वाले जस्टिस वोरा को हटाए गए

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अहमदाबाद सिविल अस्पताल की दुर्गति और कोरोना इलाज में नाकामी को लेकर गुजरात सरकार की आलोचना करने वाले खंडपीठ को बदल दिया गया है।
गुजरात हाई कोर्ट ने इस तरह के मामलों की सुनवाई के लिए नया खंडपीठ बनाया है और उसमें जस्टिस इलेश वोरा को जगह नहीं दी गई है।

नई बेंच का गठन

गुरुवार को नई बेंच का गठन किया गया, जिसकी अध्यक्षता चीफ़ जस्टिस विक्रम नाथ कर रहे हैं। इसमें जस्टिस जे. बी. पारडीवाला भी हैं। पर इसमें जस्टिस इलेश वोरा का नाम नहीं है।
जिस खंडपीठ ने गुजरात सरकार की आलोचना की थी, उसमें जस्टिस पारडीवाला और जस्टिस वोरा थे।
इस मामले का स्वत: संज्ञान लेते हुए 29 मई को जो सुनवाई होनी थी, उसके लिए पहले से बेंच बनाई गई थी। उस बेंच में ये दोनों जज थे।
जस्टिस पारडीवाला और जस्टिस वोरा के खंडपीठ ने 22 मई को दिए अपने एक आदेश में अहमदाबाद सिविल अस्पताल की स्थिति और कोरोना रोगियों के इलाज पर गंभीर टिप्पणी की थी। उन्होंने इसे ‘काल कोठरी से भी बदतर’ क़रार दिया था।
अदालत ने बीजेपी की विजय रुपाणी सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा है कि वह कोरोना पर ‘नकली तरीके’ से नियंत्रण पाना चाहती है। अदालत ने राज्य सरकार को यह फटकार तब लगाई है जब इस सिविल अस्पताल में 377 कोरोना रोगियों की मौत हो चुकी है। यह राज्य में हुई कोरोना मौतों का लगभग 45 प्रतिशत है।
अदालत ने राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं की तुलना ‘डूबते हुए टाइटनिक जहाज़’ से करते हुए कहा था, ‘यह बहुत ही परेशान करने वाला और दुखद है कि आज की स्थिति में अहमदाबाद के सिविल अस्पताल की स्थिति बहुत ही दयनीय है,
अस्पताल रोग के इलाज के लिए होता है, पर ऐसा लगता है कि आज की तारीख़ में यह काल कोठरी जैसी है, शायद उससे भी बदतर है।

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