राजनीति का अपराधीकरण – आशुतोष मिश्रा

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जब सम्पूर्ण राजनीतिक व्यवस्था अपराधियों के सम्मान में, सुरक्षा कवच की तरह ‘बचाव पक्ष’ बन कर खड़ी हो, तो राजनीति को अपराधीकरण से आखिर कैसे बचाया जा सकता है ‘अपराधियों का चुनाव प्रक्रिया में भाग लेना’ हमारी निर्वाचन व्यवस्था का एक नाज़ुक अंग बन गया है।
जनप्रतिनिधियों की दादागिरी, गुंडागर्दी, बदतमीजी, आम आदमी से लेकर सरकारी अधिकारियों को धमकाने और पीटने की घटनाएं बार-बार लोकतंत्र को आहत करती रही हैं।जनप्रतिनिधियों की दादागिरी, गुंडागर्दी, बदतमीजी जैसी अराजक स्थितियां भारतीय लोकतंत्र को दूषित करती रही हैं।
यह किसी एक पार्टी या प्रदेश की समस्या भी नहीं है। लगभग हर पार्टी और हर प्रदेश इस समस्या से ग्रस्त है। कुछ प्रदेशों में यह समस्या कभी ज्यादा मुखर हो जाती है। यह कोई आजकल में पैदा हुई समस्या नहीं, बल्कि बहुत पुरानी है और इसलिए इसकी जड़ें हर जगह और बहुत गहराई तक हैं। इसलिये इस जटिल समस्या के समाधान के प्रयत्न भी उतने ही गहरे एवं दृढ़ता से करने होंगे।
अपराधीकरण का अर्थ राजनीति में आपराधिक आरोपों का सामना कर रहे लोगों और अपराधियों की बढ़ती भागीदारी से है। सामान्य अर्थों में यह शब्द आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों का राजनेता और प्रतिनिधि के रूप में चुने जाने का घोतक है।वर्तमान में ऐसी स्थिति बन गई है कि राजनीतिक दलों के मध्य इस बात की प्रतिस्पर्द्धा है कि किस दल में कितने उम्मीदवार आपराधिक पृष्ठभूमि के हैं,
क्योंकि इससे उनके चुनाव जीतने की संभावना बढ़ जाती है।राजनीतिक दलों पर इनकी पकड़ इतनी मजबूत है कि उनके बिना सत्ता और चुनाव की राजनीति संभव नहीं। सच है कि बिना राजनीतिक संरक्षण के, आवारा पूंजी,धर्म और अपराध के विषवृक्ष कैसे फलते-फूलते! महंगे चुनावों का आर्थिक बोझ कौन उठाएगा! बाहुबली जो पहले नेताओं का पीछे से समर्थन करते थे,
बाद में खुद राजनेता बन कर उभरने लगे। वस्तुस्थिति यह भी है कि सब कुछ जानते हुए भी मतदाताओं ने आपराधिक छवि वाले नेताओं को भी, भारी बहुमत से जीतने दिया है। धनबल, बाहुबल के अलावा सामंती संस्कार और जातीय वर्चस्व के सामने मतदाता अभी भी कितना कमजोर और असहाय है,
अपराधियों का पैसा और बाहुबल राजनीतिक दलों को वोट हासिल करने में मदद करता है। चूँकि भारत की चुनावी राजनीति अधिकांशतः जाति और धर्म जैसे कारकों पर निर्भर करती है, इसलिये उम्मीदवार आपराधिक आरोपों की स्थिति में भी चुनाव जीत जाते हैं।
चुनावी राजनीति कमोबेश राजनीतिक दलों को प्राप्त होने वाली फंडिंग पर निर्भर करती है और चूँकि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों के पास अक्सर धन और संपदा काफी अधिक मात्रा में होता है, इसलिये वे दल के चुनावी अभियान में अधिक-से-अधिक पैसा खर्च करते हैं और उनके राजनीति में प्रवेश करने तथा जीतने की संभावना बढ़ जाती है।भारत की राजनीति में अपराधीकरण को बढ़ावा देने में नागरिक समाज का भी बराबर का योगदान रहा है। अक्सर आम आदमी अपराधियों के धन और बाहुबल से प्रभावित होकर बिना जाँच किये ही उन्हें वोट दे देता है।
इसके अलावा भारतीय राजनीति में नैतिकता और मूल्यों के अभाव ने अपराधीकरण की समस्या को और गंभीर बना दिया है। अक्सर राजनीतिक दल अपने निहित स्वार्थों के लिये अपराधीकरण की जाँच करने से कतराती हैं।
राजनीति के अपराधीकरण का प्रभाव
देश की राजनीति और कानून निर्माण प्रक्रिया में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों की उपस्थिति का लोकतंत्र की गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है राजनीति के अपराधीकरण के कारण चुनावी प्रक्रिया में काले धन का प्रयोग काफी अधिक बढ़ जाता है।राजनीति के अपराधीकरण का देश की न्यायिक प्रक्रिया पर भी प्रभाव देखने को मिलता है और अपराधियों के विरुद्ध जाँच प्रक्रिया धीमी हो जाती है।
राजनीति में प्रवेश करने वाले अपराधी सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार को बढ़ावा देते हैं और नौकरशाही, कार्यपालिका, विधायिका तथा न्यायपालिका सहित अन्य संस्थानों पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं।
राजनीति का अपराधीकरण समाज में हिंसा की संस्कृति को प्रोत्साहित करता है और भावी जनप्रतिनिधियों के लिये एक गलत उदाहरण प्रस्तुत करता है।
आशुतोष मिश्रा पटना)

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