पत्रकार और पत्रकारिता के बदलते स्वरूप में स्वतंत्रता असंभव

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आज वर्तमान परिदृश्यों में देश दुनिया में पत्रकारिता को स्वतंत्रता दिवस के रूप में देखना या सोचना आपने आप को गुमराह करने जैसे प्रतीत होता है ।
क्योंकि आज जो पत्रकारिता का स्वरूप है वह मन को विचलित करने वाला है ।
ऐसे बहुत से देश है जहाँ पर पत्रकारिता में स्वतंत्रता नही है
फिर क्यों अंतर्राष्ट्रीय पत्रकारिता स्‍वतंत्रता दिवस ( World Press Freedom Day) प्रत्येक वर्ष ३ मई को मनाया जाता है।
क्या वाकई आज देश का पत्रकार स्वतंत्र है ?
क्यों स्वतंत्रता के नाम पर झूठ का चोला ओढ़ कर हम कार्य कर रहे है ?
जब एक पत्रकार अपने हक की तनख्वाह तक नही ले पाता है तो क्या वाकई हम स्वत्रंत पत्रकारिता कर रहे है ।
क्यों हम अपने आप को देश का चौथा स्तम्भ मानते है
जब स्तम्भ देश के चारों कोनों में चित है,
जब संयुक्त राष्ट्र महासभा और यूनेस्को भी देश दुनिया मे पत्रकारों के हक की रक्षा नही कर पा रहा है
तो हम क्यों अंतरास्ट्रीय पत्रकारिता स्वतंत्रता दिवस मना कर खुश है ?
क्या इन महासंगठनो को नही मालूम कि दुनिया मे पत्रकारों के साथ क्या बर्बरता हो रही है,
उन्हें क्या वेतनमान मिल रहा है, जब नीति नियम बनाये गए थे
पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर उन्ही का पालन देश विदेश की सरकार नही करा पाती है ।
तो छोड़ देना चाहिए ये झूठी सांत्वना देने, क्या हम पत्रकार इतने कमजोर हो गए है
जो दूसरों के हक के लिए लड़ते लड़ते आपने हक पाना भूल गए है या हक लेने में असमर्थ हो गए है ?
आज देश दुनिया मे कोरोना संकट छाया हुआ है
सब कोरोना वॉरियर्स को सलाम कर रहे है,
परंतु क्यों देश दुनिया की सभी न्याय पालिका, संगठन, सरकारों ने हमें सुरक्षा प्रदान की हिम्मत नही उठाई ?
क्या मरणोपरांत किसी व्यक्ति को सहायता या पुरूस्कार देना न्यायचित है,
क्या जीतेजी उसकी कार्यशैली आपको पुरूस्कार युक्त नही लगी ।
अब जब दुनिया में पत्रकारिता करना जोखिम भरा हो गया था तब भी किसी प्रकार की कोई सहायता नही मिलती ।
जबकि वर्ष 1991 में यूनेस्को और संयुक्त राष्ट्र के ‘जन सूचना विभाग’ ने मिलकर इसे मनाने का निर्णय किया था।
‘संयुक्त राष्ट्र महासभा’ ने भी ‘3 मई’ को ‘अंतर्राष्ट्रीय पत्रकारिता स्‍वतंत्रता दिवस’ की घोषणा की थी।
यूनेस्को महासम्मेलन के 26वें सत्र में 1993 में इससे संबंधित प्रस्ताव को स्वीकार किया गया था।
इस दिन के मनाने का उद्देश्य प्रेस की स्वतंत्रता के विभिन्न प्रकार के उल्लघंनों की गंभीरता के बारे में जानकारी देना है।
परन्तु आज हमारे लिए इस परिदृश्य में पत्रकार मजबूर
और लाचार हो चुका है
अपनी स्वतंत्रता और सुरक्षा को लेकर वही देश दुनिया मे मौजूद संगठन साथ महज दिखावा बन के राह गयी है ।
( हरिशंकरपाराशर कटनी)

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