घोसी में समीकरण और सहानुभूति का घमासान, यूपी में विधानसभा चुनाव से पहले ‘मिनी बैटल’ की तैयारी

राष्ट्रीय जजमेंट

लखनऊ: यूपी में विधानसभा चुनाव के पहले पक्ष और विपक्ष के बीच ‘मिनी बैटल’ की भूमिका तैयार होने लगी है। घोसी विधानसभा की सीट रिक्त होने के बाद वहां उपचुनाव होना है। सहानुभूति बनाम समीकरण की सज रही रणभूमि में दोनों ओर संभावनाओं और रणनीति पर काम शुरू हो गया है। सपा दिवंगत विधायक सुधाकर सिंह के बेटे पर ही दांव लगाने की तैयारी में है, वहीं भाजपा में नए-पुराने चेहरे जमीन बनाने में जुट गए है।
मऊ जिले की घोसी विधानसभा सीट पिछले चार चुनावों से भाजपा-सपा के बीच झूल रही है। महज छह साल में यहां दो आम चुनाव और दो उपचुनाव हुए है। इसके बाद तीसरे उपचुनाव की भी पृष्ठभूमि बन गई है। 2023 में हुए उपचुनाव में समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार सुधाकर सिंह ने कद्दावर नेता और मंत्री रहे भाजपा उम्मीदवार दारा सिंह चौहान को 42 हजार से भी अधिक वोटों से मात दी थी। ये नतीजे तब थे, जब सरकार-संगठन ने पूरी ताकत झोंकी थी। खास बात यह है कि तब यह सीट खुद दारा के इस्तीफे के बाद खाली हुई थी। महज एक साल में दारा का पार्टी बदलना वोटरों को पसंद नहीं आया था और सुधाकर ने उनकी जमीन छीन ली थी।
सूत्रों का कहना है कि सपा ने यहां दिवंगत विधायक सुधाकर सिंह के बेटे सुजीत सिंह को ही उम्मीदवार बनाने का मन बनाया है। सुजीत पहले दो बार ब्लॉक प्रमुख रह चुके है। सुधाकर की जमीन और उनके आकस्मिक निधन से उपजी सहानुभूति का भी सियासी फायदा मिलेगा। वहीं, भाजपा से दारा सिंह चौहान के फिर दावेदारी की संभावना काफी कम है। हारने के बाद भी उन्हें उच्च सदन भेजकर मंत्री बनाया जा चुका है। एक बार उपचुनाव जीत चुके विजय राजभर भी संभावित चेहरों में शुमार है।घोसी में पिछले चार चुनावों के नतीजे देखें तो इनका रुख तय करने में बसपा की अहम भूमिका रही है। 2017 में यह सीट भाजपा के फागू सिंह चौहान 7 हजार वोटों से तब जीते थी, जब बसपा को 81 हजार और सपा को 59 हजार से अधिक वोट मिले थे। फागू के राज्यपाल बनने के बाद 2019 में उपचुनाव हुआ तो सपा के सुधाकर सिंह से भाजपा उम्मीदवार विजय राजभर को जबर्दस्त टक्कर मिली। वह महज 1773 वोट से चुनाव जीत पाए।तब सुधाकर को तकनीकी कारणों से सपा का सिंबल नहीं मिला था और वह निर्दलीय लड़े थे। बसपा को 50 हजार से अधिक वोट मिले थे। 2023 के उपचुनाव में बसपा, कांग्रेस ने उम्मीदवार नहीं उतारा। लड़ाई सीधी हुई तो सुधाकर ने दारा को करारी मात दी थी।

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