राष्ट्रीय जजमेंट
नई दिल्ली: भारत के मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत की अगुवाई वाली पीठ उस इस्लामी प्रथा की जांच कर रही है, जिसमें तलाक-ए-हसन के तहत कोई मुसलमान पति अपनी पत्नी को तीन महीने में तीन बार तलाक कहकर शादी भंग कर देता है। जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने कुछ सवाल उठाते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले को संविधान पीठ को सौंपने की जरूरत पर विचार करेगा। जस्टिस सूर्यकांत के समक्ष ये एक बड़ा मामला है, जिन्होंने सोमवार यानी 24 नवंबर को देश के नए सीजेआई पद की शपथ ली है। जानते हैं कि मुस्लिम समाज में तलाक की ऐसी और कौन सी प्रथाएं हैं, जो मुस्लिम औरतों की गरिमा का हनन करती हैं।
क्या कहा था जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने
बीते 19 नवंबर को सुनवाई में जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने पूछा था कि महिलाओं की गरिमा को प्रभावित करने वाली ऐसी प्रथा को सभ्य समाज में कैसे जारी रहने दिया जा सकता है। जस्टिस सूर्यकांत ने मौखिक रूप से टिप्पणी करते हुए कहा था कि यह कैसी बात है? आप 2025 में इसे कैसे बढ़ावा दे रहे हैं? क्या इसी तरह एक महिला की गरिमा को बनाए रखा जा सकता है? क्या एक सभ्य समाज को इस तरह की प्रथा की अनुमति देनी चाहिए? अदालत पत्रकार बेनजीर हीना की याचिका पर सुनवाई कर रही है, जिन्होंने तर्क दिया है कि तलाक-ए-हसन मौलिक अधिकारों, विशेष रूप से संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21 और 25 का उल्लंघन है। इस मामले की अगली सुनवाई 26 नवंबर को निर्धारित की। दिल्ली में सीनियर एडवोकेट शिवाजी शुक्ला के अनुसार, मुस्लिमों में तलाक के कई प्रकार हैं। कोई भी मुस्लिम पति अपनी पत्नी को कभी भी तलाक दे सकता है। इसके लिए पति को तलाक के वक्त हर शर्त पूरी करनी होगी। इसे भी दो हिस्से में बांटा जाता है।तलाक-ए-सुन्नततलाक-ए-सुन्नत अक्सर तलाक-उल-राजे के नाम से जाना जाता है। इस तरह के तलाक में हमेशा सुलह और समझौते की गुंजाइश होती है। शिया और सुन्नी दोनों ही इसे मानते हें। वो इसे तलाक लेने का वैध जरिया भी मानते हैं। यह तरीका भी दो हिस्सों में बंटा है।तलाक-ए-अहसानएडवोकेट शिवाजी शुक्ला बताते हैं कि तलाक-ए-अहसान में पति एक वाक्य में तलाक कहकर संबंध विच्छेद कर सकता है। यह तलाक तभी मान्य होता है, जब पत्नी को पीरियड्स नहीं आ रहे हों। इसे तुहर पीरियड कहा जाता है। यह ऐलान बस एक बार ही होता है।
तलाक-ए-इद्दततलाक-ए-इद्दत में तलाक के बाद महिलाओं का ख्याल रखा गया है। तलाक-ए-इद्दत का समय तीन महीने का होता है। इसमें किसी व्यक्ति की पत्नी की तीन मेंस्ट्रुअल साइकिल को ध्यान में रखते हुए बनाया गया है। अगर पत्नी गर्भवती है तो इद्दत पीरियड बच्चे के जन्म तक बढ़ाया जा सकता है। इद्दत पीरियड के दौरान पति अपनी पत्नी से संबंध नहीं बना सकता है। अगर वह संबंध बनाता है तो तलाक उलट हो सकता है।
तलाक-ए-हसनतलाक-ए-हसन को इस्लामी प्रथाओं में बहुत कम तवज्जो मिलती है। इस मामले में तीन बार तलाक को तीन महीने में कहा जाता है। यह तलाक का ऐलान तभी मान्य होगा, जब बीवी को पीरियड्स नहीं आ रहे हों। अगर पीरियड्स आ रहे हैं तो तलाक की घोषणा अगले 30 दिनों के भीतर हर महीने करनी होगी। ऐसा तीन महीने तक करना होगा। इस दौरान भी यौन संबंध नहीं बनाया जा सकता है। हसन को अभी तक Muslim Women (Protection of Rights on Marriage) Act, 2019 के तहत अपराध नहीं बनाया गया है।
तलाक-ए-बिद्दततलाक-ए-बिद्दत को एक तरह से पाप बताया गया है। इस तरह के तलाक को शादी तोड़ने का मान्य तरीका नहीं माना जाता है। तलाक-ए-बिद्दत को तलाक-उल-बैन भी कहा जाता है। इसी को ट्रिपल तलाक कहा गया है, जो सुप्रीम कोर्ट की ओर से ‘शायरा बानो बनाम यूनियन ऑफ इंडिया(2017)’ के मामले में भारत में बैन कर दिया गया है। इसमें तीन बार तलाक कह देने से तलाक करार दे दिया जाता था। यह केवल सुन्नी प्रथाओं में ही मान्य था। शिया और मलिक लोग इसे नहीं मानते हैं। यह Muslim Women (Protection of Rights on Marriage) Act, 2019 के तहत अपराध है।तलाक-ए-इलाइस तरह के तलाक में पति अपनी पत्नी के साथ यौन संबंध न रखने की शपथ लेता है। यह एक अस्थायी अलगाव है जिसमें पति एक निर्दिष्ट अवधि (जैसे चार महीने) के लिए पत्नी के साथ यौन संबंध बनाने से परहेज करता है। यदि वह शपथ को तोड़ता है, तो विवाह जारी रहता है। अगर वह शपथ को पूरा करता है, तो निकाह खुद ही खत्म हो जाता है।तलाक-ए-जिहारजिहार भी इला की तरह ही एक रचनात्मक तलाक का तरीका है। इस तरह के तलाक में पत्नी की तुलना किसी और दूसरी औरत से की जाती है। जैसे पति अगर अपनी मां से पत्नी की तुलना कर दे तो ऐसी स्थिति में संबंध बनाने की मनाही हो जाती है। इस प्रथा के प्रायश्चित के लिए पति या तो गुलाम को आजाद करता है या फिर लगातार दो महीने तक उपवास करता है।तलाक-ए-खुलातलाक के इस तरीके में पति और पत्नी के बीच आपसी सहमति जरूरी है। इसमें पत्नी अपने पति से विवाह समाप्त करने की पहल करती है। इसमें महिला तलाक की शुरुआत करती है, आमतौर पर इसके मुआवजे के रूप में पति को मेहर (निकाह के समय दिया गया उपहार) वापस कर देती है। यह वैध कारणों जैसे शारीरिक या भावनात्मक नुकसान पर आधारित हो सकता है।
तलाक-ए-मुबारतमुबारत का मतलब है आपसी मुक्ति। तलाक-ए-मुबारत मुस्लिम तलाक का एक प्रकार है जिसमें पति और पत्नी दोनों आपसी सहमति और इच्छा से अपनी शादी को खत्म करने के लिए सहमत होते हैं। यह एक सौहार्दपूर्ण प्रक्रिया है, जहां दोनों पक्ष अलग होने के लिए सहमत होते हैं। यह तब होता है जब वे विवाह को जारी नहीं रखना चाहते और अलगाव के लिए किसी भी पक्ष की ओर से प्रस्ताव आ सकता है।
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