जन्‍म से अंधे हैं, कभी जंगल नहीं देखा और वन विभाग ने बना दिया शिकारी! लखीमपुर खीरी की खौफनाक हकीकत

राष्ट्रीय जजमेंट

लखीमपुर खीरी: यूपी के लखीमपुर खीरी जिले में थारू आदिवासी समुदाय के सदस्यों के खिलाफ 2012 में दर्ज किए गए 4,000 से अधिक वन अपराध मामलों की समीक्षा की जा रही है। इनमें कई ऐसे मामले शामिल हैं जिनमें शारीरिक रूप से अक्षम या जन्म से अंधे व्यक्तियों को फंसाया गया था। यह मामला तब सामने आया जब थारू समुदाय ने अपने वन अधिकारों की कानूनी मान्यता की मांग की थी।समाजवादी पार्टी सरकार के कार्यकाल के दौरान, 2012 में लखीमपुर खीरी में थारू आदिवासी समुदाय के सदस्यों के खिलाफ 4,000 से अधिक वन अपराध मामले दर्ज किए गए थे। इनमें से कई मामले ऐसे व्यक्तियों के खिलाफ थे जो शारीरिक रूप से अक्षम थे या जिन्हें गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं थीं। इन मामलों में से एक में सूरदास राम भजन (40) का नाम भी शामिल है, जो जन्म से अंधे हैं। सूरदास का कहना है- ‘मैंने कभी जंगल देखा भी नहीं है। मैं अपनी 70 वर्षीय मां की मदद से चलता हूं। मेरा छोटा भाई राजन मानसिक रूप से विकलांग है और बचपन से ही जंजीरों में रहा है। फिर भी हम दोनों पर मामला दर्ज किया गया।’ 37 साल के राजन पर अवैध रूप से पेड़ काटने का आरोप लगाया गया था। उनकी मां गुलाबू देवी ने कहा, ‘मेरे बेटे कभी जंगल गए ही नहीं, लेकिन विभाग ने उन्हें झूठे मामलों में फंसाया।’
2012 में बड़े पैमाने पर थारू समुदाय के लोगों के खिलाफ केस दर्ज किए गए। इसकी वजह थारू संघ की तरफ से अपने वन अधिकारों की कानूनी मान्यता की मांग करने वाली याचिका दायर करना था।मैं सालों से गांव से बाहर नहीं निकला: गांव के पुजारीएक अन्य मामला 55 वर्षीय हर दयाल सिंह का है, जिन्हें रीढ़ की हड्डी की पुरानी बीमारी है। उन पर पक्षियों के घोंसले नष्ट करने के लिए पेड़ पर चढ़ने का आरोप लगाया गया था। वे कहते हैं- ‘मैंने पेड़ पर चढ़ाई की। शायद ऐसा मैं अगले जन्म में कर पाऊं, अभी मैं मुश्किल से खड़ा हो पाता हूं।’ इसी तरह, गांव के पुजारी कर्म लाल को भी जंगली मांस बेचने के आरोप में बुक किया गया था। कर्म लाल का कहना है- ‘मैं सालों से गांव से बाहर नहीं निकला हूं। मुझे जंगल या बाजार के बारे में कुछ नहीं पता।’तराई इलाकों में पाया जाता है थारू समुदायथारू समुदाय उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार और दक्षिणी नेपाल के तराई क्षेत्र का मूल निवासी है। यह समुदाय ऐतिहासिक रूप से खेती और जंगल-आधारित आजीविका पर निर्भर रहा है। 1977 में दुधवा को राष्ट्रीय उद्यान और 1988 में बाघ अभयारण्य घोषित किए जाने के बाद कई थारू गांव संरक्षित वन क्षेत्रों के भीतर या साथ में आ गए जिससे भूमि और संसाधनों तक उनकी पहुंच समाप्त हो गई। वन अधिकार अधिनियम, 2006 का उद्देश्य अनुसूचित जनजातियों और वनवासियों को आवास, खेती और वन उपयोग के लिए कानूनी अधिकार प्रदान करना था। हालांकि, लखीमपुर खीरी में दायर कई थारू दावों को या तो खारिज कर दिया गया या लंबित छोड़ दिया गया।विधायक रोमी साहनी ने योगी के समक्ष उठाया मुद्दापलिया के भाजपा विधायक रोमी साहनी ने बताया कि 2012 में बड़े पैमाने पर थारू समुदाय के लोगों के खिलाफ केस दर्ज किए गए। इसकी वजह थारू संघ की तरफ से अपने वन अधिकारों की कानूनी मान्यता की मांग करने वाली याचिका दायर करना था। जब मामले की सुनवाई चल रही थी, स्थानीय लोगों के एक समूह ने गिरी हुई लकड़ी इकट्ठा करने के लिए जंगल में प्रवेश किया। वन विभाग ने मतदाता सूची ली और लगभग हर निवासी पर मामला दर्ज कर लिया। साहनी ने बताया कि उन्होंने न केवल उन लोगों के खिलाफ मामले दर्ज किए जो जंगल में गए थे, बल्कि उन लोगों के खिलाफ भी जो कभी घर से बाहर नहीं निकले। यहां तक कि शारीरिक रूप से अक्षम मृत लोगों के खिलाफ भी केस दर्ज कर लिया गया। साहनी ने इस मामले को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के समक्ष उठाया है।ग्राम प्रधान राम बहादुर पर 29 मुकदमेसरैया पारा गांव में, जिसकी आबादी लगभग 1,500 है, कम से कम 375 लोगों को भारतीय वन अधिनियम और वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों के तहत बुक किया गया था। ग्राम प्रधान राम बहादुर के खिलाफ 29 मामले दर्ज हैं, जिनमें से 26 में उन्हें जमानत मिल चुकी है। राम बहादुर ने बताया कि मैंने कानूनी खर्चों पर 9 लाख रुपये से अधिक खर्च किए हैं। मुझे 3.5 लाख रुपये उधार लेने पड़े।अफसरों को पैसा देने से इन्‍कार पर मिलती है धमकी: 70 वर्षीय बदना देवीवहीं, 70 वर्षीय बदना देवी ने कहा कि उन पर शराब और जंगली मांस बेचने का आरोप लगाया गया। अगर हम अपनी आवाज उठाते हैं या अधिकारियों के आने पर पैसे देने पर इनकार करते हैं, तो हमें नए मामलों की धमकी दी जाती है। कई ग्रामीणों ने बताया कि उन पर मुकदमा दर्ज होने से पहले कोई सूचना नहीं दी गई थी।वन विभाग कर रहा समीक्षा दुधवा टाइगर रिजर्व के फील्ड निदेशक राजा मोहन ने बताया कि हालांकि पहले चार्जशीट दाखिल की गई थी, विभाग अब मामले की समीक्षा कर रहा है। हम समीक्षा के बाद टिप्पणी करेंगे। पिछले महीने सात थारू गांवों के ग्राम प्रधानों ने लखनऊ में मुख्‍यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात की और उन्हें हस्तक्षेप करने के लिए कहा था। मुख्यमंत्री ने उन्हें आश्वासन दिया कि मामले की जांच की जाएगी और झूठे तरीके से फंसाए गए लोगों को राहत प्रदान की जाएगी।

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