काशी में 482 सालों से चल रही है यह अद्भुत परंपरा, यदुवंशी उठाते हैं प्रभु श्री राम का रथ, काशी नरेश देते हैं सोने की गिन्नी

राष्ट्रीय जजमेंट

वाराणसी : बनारस अपनी परंपरा के लिए जाना जाता है, परंपरा कैसे निभाई जाती है, बनारस के लोगों ने आज एक बार फिर इसे साबित कर दिया. बनारस में आज सुबह से हो रही जबरदस्त बारिश के बाद भी 482 साल पुरानी राम-भरत मिलाप बड़े ही धूमधाम के साथ पूरा हुआ. भींगते हुए भगवान श्री राम, लक्ष्मण अपने भाइयों भरत और शत्रुघ्न से गले मिले. लाखों लोगों ने छाता लेकर और भीगते हुए इस लीला का आनंद लिया.यह लीला एक तरफ जहां भगवान राम और उनके भाइयों के मिलन के लिए जानी जाती है, तो अपनी अद्भुत उस परंपरा के लिए भी जानी जाती है जो यदुवंशी समाज निभाता है. लंबे वक्त से यदुवंशी समाज के लोग ही भगवान का भारी भरकम रथ उठाते हैं. अकेले इस रथ का वजन 200 किलो से ज्यादा है. जिसे उठाने के लिए यदुवंशी समाज के लोग सज धज कर पहुंचते हैं.एक झलक पाने को उतावले रहते हैं लोग : काशी की अद्भूत लीला में 55 साल से शामिल होने वाले लक्ष्मण प्रसाद यादव अपने आप को भाग्यशाली मानते हैं. लक्ष्मण प्रसाद यादव का कहना है कि 482 साल पहले तुलसीदास के समकक्ष मेघा भगत जी ने स्वप्न देखने के बाद इस लीला की शुरुआत की थी. यह लीला तभी से चली आ रही है. इस लीला में यह मान्यता है कि प्रभु श्री राम अपने सभी भाइयों के साथ साक्षात दर्शन देते हैं, जिसकी एक झलक पाने के लिए लोग उतावले रहते हैं.लाल टोपी, सफेद बनियान और धोती है ड्रेस कोड : यदुवंशी समाज के लोग सिर पर लाल पगड़ी और सफेद बनियान से साथ सफेद धोती पहनकर इस रथ को उठाते हैं. हजारों यदुवंशियों के कंधे पर भगवान श्री राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न, हनुमान और माता सीता विराजमान होकर शहर का भ्रमण करने निकलते हैं. एक तरफ जहां इस परंपरा का निर्वहन यदुवंशी समाज के लोगों ने किया. वहीं बारिश के बीच इस सैकड़ों वर्ष पुरानी परंपरा में काशी नरेश के बेटे कुंवर अनंतनारायणन सिंह ने भी शिरकत की.
लीला देखने के लिए बारिश में भी पहुंचे लाखों लोग.काशी नरेश ने भेंट की स्वर्ण गिन्नी : यह परंपरा भी वर्षों पुरानी है. काशी नरेश इस आयोजन में हाथी पर सवार होकर सोने की गिन्नी देने के लिए आते हैं. लेकिन बारिश होने के कारण कुंवर अनंतनारायण सिंह गाड़ी से पहुंचे और भगवान श्री राम को स्वर्ण गिन्नी भेंट करके उनका आशीर्वाद लिया.

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