ग्राहकों से वादा कर टाइम पर फ्लैट की पजेशन न देना पड़ेगा बहुत महंगा, SC ने बिल्डर्स को लेकर क्या आदेश दे दिया?

राष्ट्रीय जजमेंट

वो बिल्डर्स जो ग्राहकों से वादा करने के बाद भी वक्त पर फ्लैट की डिलीवरी नहीं देते हैं। उन्हें अब ये बहुत महंगा पड़ने वाला है। ग्रेटर मोहाली एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी (जीएमएडीए) बनाम अनुपम गर्ग एवं अन्य के मामले में हाल ही में दिए गए फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि देरी या डिलीवरी न होने की स्थिति में डेवलपर्स को पीड़ित घर खरीदारों को ब्याज सहित मूल राशि वापस करनी होगी। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि डेवलपर्स खरीदारों द्वारा अपने घरों के वित्तपोषण के लिए लिए गए व्यक्तिगत ऋण पर ब्याज का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता। फैसले में, न्यायालय ने स्पष्ट किया कि डेवलपर्स को घर खरीदारों को देरी या डिलीवरी न होने की स्थिति में ब्याज सहित मूल राशि वापस करनी होगी।

जस्टिस संजय करोल और प्रसन्ना बी वराले की पीठ ने पिछले सप्ताह मोहाली के सेक्टर 88 में जीएमएडीए के ‘पूरब प्रीमियम अपार्टमेंट’ प्रोजेक्ट से उपजे विवाद में यह फैसला सुनाया। खरीदार अनुपम गर्ग और राजीव कुमार ने 2012 में 2-बीएचके फ्लैट बुक किए थे और क्रमशः ₹50.46 लाख और ₹41.29 लाख जमा किए थे। उन्हें लेटर ऑफ इंटेंट (एलओआई) के तहत मई 2015 तक कब्जा देने का वादा किया गया था, जिसमें देरी होने पर 8% ब्याज के साथ रिफंड का आश्वासन भी दिया गया था। धीमी प्रगति और वादा किए गए लेआउट और सुविधाओं से बड़े विचलन का हवाला देते हुए, खरीदारों ने 2016 में रिफंड की मांग की। जब GMADA ने इसका विरोध किया, तो उन्होंने पंजाब राज्य उपभोक्ता आयोग का रुख किया।
हालाँकि, GMADA ने खरीदारों के ऋण ब्याज का भुगतान करने के निर्देश को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी। अपने फ़ैसले में न्यायालय ने फिर से पुष्टि की कि देरी से कब्ज़ा मिलने पर खरीदार उचित ब्याज के साथ धन वापसी का हकदार है। बेंच ने बैंगलोर डेवलपमेंट अथॉरिटी बनाम सिंडिकेट बैंक में अपने पहले के फ़ैसले का हवाला देते हुए कहा कि जहां विकास प्राधिकरण… कब्ज़ा नहीं देता है… तो आवंटी उचित ब्याज के साथ धन वापसी का हकदार है। पीठ ने जीडीए बनाम बलबीर सिंह मामले का हवाला देते हुए कहा कि मुआवजा मामले के तथ्यों के अनुसार अलग-अलग होना चाहिए। ऐसे मामलों में जहां धनराशि वापस की जा रही है… मुआवजा अनिवार्य रूप से अधिक होना चाहिए।

उपभोक्ता को उसका मुआवजा पाने का हक

हालांकि, न्यायाधीशों ने कई मदों के तहत मुआवज़ा देने से इनकार कर दिया। डीएलएफ होम्स पंचकूला बनाम डी.एस. ढांडा का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि जब पक्षकार मुआवज़ा देने के लिए सहमत हो गए हैं तो मुआवज़ा और ब्याज देने के लिए कई मद नहीं हो सकते। न्यायमूर्ति करोल ने कहा कि 8% ब्याज दिया गया। निवेश से वंचित होने के लिए मुआवज़ा है… प्रतिवादियों द्वारा लिए गए ऋण पर ब्याज की कोई राशि नहीं दी जा सकती थी। न्यायालय ने GMADA की अपील को आंशिक रूप से स्वीकार कर लिया – ऋण ब्याज घटक को हटा दिया, लेकिन उपभोक्ता आयोगों द्वारा दी गई शेष राहत को बरकरार रखा। GMADA को कोई अतिरिक्त राशि जमा नहीं करानी होगी, और राज्य आयोग के पास पहले से मौजूद धन को खरीदारों को वितरित कर दिया जाएगा।

 

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