अरुणाचल प्रदेश पर चीन की टेढ़ी नजर को देखते हुए भारत ने ‘पूरी तैयारी’ कर रखी है

राष्ट्रीय जजमेंट

चीन की नजर अरुणाचल प्रदेश पर दशकों से लगी हुई है लेकिन ये नया भारत चूंकि आंखों में आंखें डाल कर बात करता है इसलिए ड्रैगन सकपकाया हुआ है। ड्रैगन अपनी खीझ मिटाने के लिए कभी नया नक्शा जारी कर तो कभी स्थानों के नाम बदल कर अरुणाचल प्रदेश पर अपना हक जताता रहता है लेकिन अरुणाचल प्रदेश की राष्ट्र भक्त जनता खुद ही चीन को करारा जवाब दे देती है। एक दिन पहले चीन ने अरुणाचल प्रदेश के कुछ स्थानों के नाम बदले तो आज राज्य की जनता सड़कों पर तिरंगा लेकर निकली हुई है और दुश्मन को स्पष्ट संदेश दे रही है कि कोई छेड़ेगा तो हम छोड़ेंगे नहीं। हम आपको बता दें कि चीन दावा करता है कि अरुणाचल प्रदेश तिब्बत का दक्षिणी भाग है जबकि यह निर्विवाद वास्तविकता है कि अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न एवं अविभाज्य अंग था, है और हमेशा रहेगा।लेकिन भारत जानता है कि चीन कभी भी हिमाकत कर सकता है इसीलिए हर तरह से खुद को तैयार किया जा रहा है। इसी कड़ी में हाल ही में भारत-चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर आईटीबीपी की 56 सीमा चौकियों को अग्रिम मोर्चे के ‘‘करीब’’ ले जाने का फैसला किया गया। इन 56 सीमा चौकियों में से 33 को पहले ही सीमा के करीब ले लाया जा चुका है। इसके साथ ही मोदी सरकार ने कुछ समय पहले सीमा सुरक्षा कार्यों के लिए सात नयी बटालियन को मंजूरी दी है। इनमें से छह बटालियन अरुणाचल प्रदेश में एलएसी पर तैनात की गई है, जबकि एक को सिक्किम में अग्रिम मोर्चे पर तैनात किया गया है। इसके अलावा चीन से सटे इलाकों में सरकार के प्रतिनिधि जिस तरह लगातार पहुँच रहे हैं उसको देखते हुए भी पड़ोसी देश को समझ नहीं आ रहा है कि करें तो क्या करें। हम आपको बता दें कि अरुणाचल प्रदेश सरकार ने इसी सप्ताह सीमावर्ती दूरदराज के क्षेत्रों में सरकार की पहुंच को सशक्त बनाने की दिशा में एक ऐतिहासिक पहल करते हुए अंजाव जिले के किबिथू में “कैबिनेट आपके द्वार” बैठक का आयोजन किया, जिसमें ₹100 करोड़ की परियोजनाओं को मंजूरी दी गई। किबिथू, चीन के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) से केवल 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह भारत के सबसे पूर्वी बसे हुए स्थानों में से एक है। साल 2023 में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी यहां पहुँचे थे और चीन बॉर्डर से महज पांच किलोमीटर की दूरी से उन्होंने ड्रैगन को संदेश दिया था कि सुई की नोक जितनी जमीन भी कब्जाने के बारे में कोई सोचे नहीं।
हम आपको यह भी बता दें कि केंद्र सरकार पर्यटकों को ज्यादा से ज्यादा सीमावर्ती क्षेत्रों में जाने के लिए कह रही है ताकि सीमा के गांवों के लोगों को आर्थिक लाभ भी हों और वहां की संस्कृति के बारे में लोग जानें भी। इस किबितू का गौरवशाली सैन्य इतिहास भी है क्योंकि यह क्षेत्र और पड़ोसी वालोंग 1962 में चीनी आक्रमण के दौरान एक भीषण जंग के गवाह बने थे। इस दौरान भारतीय सेना के जवानों ने चीन की जनमुक्ति सेना (पीएलए) के खिलाफ बहादुरी से लड़ाई लड़ी और देश के भूभाग का बचाव किया था।हम आपको यह भी बता दें कि मोदी सरकार अरुणाचल में सड़क संपर्क के लिए विशेष रूप से करोड़ों रुपये के केंद्रीय योगदान के साथ ‘वाइब्रेंट विलेजेस प्रोग्राम’ भी चला रही है। इसी के साथ ही ‘स्वर्ण जयंती सीमा प्रकाश कार्यक्रम’ के तहत निर्मित राज्य सरकार की सूक्ष्म पनबिजली परियोजनाओं को भी केंद्र सरकार मदद दे रही है। ये बिजली परियोजनाएं सीमावर्ती गांवों में रहने वाले लोगों को सशक्त बना रही हें। सीमाई इलाकों में सुविधा बढ़ाने के लिए सरकार कितनी प्रयासरत है इसका एक उदाहरण गत वर्ष रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के अरुणाचल दौरे के दौरान भी सामने आया था जब उन्होंने एलएसी के पास एक पुल का उद्घाटन कर भारत की रक्षा तैयारियों को बल प्रदान किया था। हम आपको बता दें कि सियोम नदी पर बनाया गया पुल रणनीतिक रूप से भारत के लिए काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह वास्तविक नियंत्रण रेखा के दूरदराज के क्षेत्रों में सैनिकों को तैनात करने में सहायक होगा।बहरहाल, जहां तक बात चीन द्वारा जारी किये जाने वाले मानचित्रों और क्षेत्र के नामकरणों की है तो ड्रैगन को समझना होगा कि अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न और अटूट हिस्सा है और ‘गढ़े’ गए नाम रखने से यह हकीकत बदल नहीं जायेगी।

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