दिल्ली में क्यों हारी आप, जानें अब तक कैसा रहा है केजरीवाल के नेतृत्व पाली पार्टी का सफर

राष्ट्रीय जजमेंट

भारतीय जनता पार्टी ने 27 साल बाद दिल्ली में ऐतिहासिक वापसी की है। भाजपा की जीत राजधानी में एक बड़े राजनीतिक बदलाव का प्रतीक है। इस जीत ने आम आदमी पार्टी के गढ़ को ध्वस्त कर दिया है। अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया जैसे प्रमुख नेता अपने निर्वाचन क्षेत्र हार गए हैं। यह निर्णायक जीत भाजपा के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण है, क्योंकि वह 1999 के बाद पहली बार सत्ता में लौटी है। केजरीवाल, जो शीला दीक्षित को हराकर दिग्गज खिलाड़ी बन गए थे, एक दशक के बाद अपनी नई दिल्ली सीट हार गए। नई दिल्ली में ऐतिहासिक प्रतिद्वंद्विता में दिल्ली की तीन बार मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित को 2013 और 2015 में केजरीवाल से हार का सामना करना पड़ा था।केजरीवाल आम आदमी पार्टी संयोजक भी हैं। पूरी पार्टी इन्हीं के इर्द-गिर्द घूमती भी है। हालांकि, दिल्ली में मिली हार के बाद पार्टी और केजरीवाल की राजनीति को लेकर कई सवाल खड़े हो रहे है। यह पार्टी 2011 के लोकप्रिय भारतीय भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में चुनावी राजनीति को शामिल करने के संबंध में केजरीवाल और कार्यकर्ता अन्ना हजारे के बीच मतभेद के बाद अस्तित्व में आई, जो 2011 से जन लोकपाल विधेयक की मांग कर रहा था। हजारे ने प्राथमिकता दी कि आंदोलन को राजनीतिक रूप से असंबद्ध रहना चाहिए, जबकि केजरीवाल को लगा कि आंदोलन मार्ग की विफलता के कारण सरकार के प्रतिनिधित्व में बदलाव की आवश्यकता है। इसकी स्थापना 26 नवंबर 2012 को अरविंद केजरीवाल और उनके तत्कालीन साथियों द्वारा की गई थी
2013 के दिल्ली विधान सभा चुनाव में अपनी चुनावी शुरुआत करते हुए, AAP दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और विधानसभा के INC सदस्यों के समर्थन से सरकार बनाने में कामयाब रही। केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री बने, लेकिन कांग्रेस के समर्थन की कमी के कारण विधानसभा में जन लोकपाल विधेयक पारित नहीं कर पाने के 49 दिन बाद उनकी सरकार ने इस्तीफा दे दिया। इसके बाद केजरीवाल 2014 के लोकसभा चुनाव में अपनी पार्टी की उम्मीदवारों को मैदान में उतारा। केजरीवाल खुद तब प्रधानमंत्री पद के दावेदार नरेंद्र मोदी के खिलाफ वाराणसी चुनाव लड़ने गए थे। लेकिन वह हार गए।2015 के चुनावों में, AAP ने विधानसभा की 70 में से 67 सीटें जीतीं और केजरीवाल ने फिर से दिल्ली के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। इसके बाद केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी की सरकार ने दिल्ली में शिक्षा, स्वास्थ्य, मुफ्त बिजली और पानी को लेकर कई बड़े काम किया जिसकी वजह से पार्टी की लोकप्रियता देश के अन्य हिस्सों में भी बढ़ी। केजरीवाल ने स्वच्छ राजनीति का वादा किया था। छोटे घर में रहूंगा, गाड़ी नहीं लूंगा, भ्रष्टाचार के खिलाफ हमारी लड़ाई जारी रहेगी, इस तरह की बातें कहीं गई थी। लेकिन पार्टी और उसके नेता लगातार भ्रष्टाचार के जाल में फंसते चले गए। केजरीवाल के नेतृत्व में पार्टी ने 2020 में भी जबरदस्त तरीके से दिल्ली में जीत हासिल की। पार्टी को 70 में से 62 सीटे मिली और तीसरे बार मुख्यमंत्री के तौर पर केजरीवाल शपथ ली। इसके बाद से ही पार्टी के लिए स्थितियां लगातार खराब होती गई। शराब घोटाले को लेकर पार्टी के नेताओं पर आरोप लगे। मनीष सिसोदिया, अरविंद केजरीवाल, संजय सिंह जैसे बड़े नेता को जेल जाना पड़ा। वहीं अन्य मामले में सत्येंद्र जैन भी जेल में थे। हालांकि, पार्टी के लिए बड़ी खबर पंजाब से आई जब उसने 2022 में 117 में से 92 सीटे जीतकर सरकार बनाने में कामयाब रही।
भगवंत मान वहां के मुख्यमंत्री बने। गुजरात में भी पार्टी ने चुनाव लड़ा और अच्छा खासा वोट प्रतिशत हासिल किया। पार्टी को गुजरात में 5 साटे मिली। वहीं, गोवा में दो सीटे मिली। फिलहाल जम्मू कश्मीर में भी पार्टी के एक विधायक है। हालांकि केजरीवाल पर जिस तरीके से भ्रष्टाचार के आरोप लगे, शीश महल में रहने को लेकर आरोप लगे, दिल्ली के जो बुनियादी दिक्कतें हैं, उस दिशा में कोई काम नहीं हुआ, इससे पार्टी और खुद उसके प्रमुख नेताओं के साख गिरती गई। – अरविंद केजरीवाल की चुनावी वादों को पूरा करने में असमर्थता दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सत्ता खोने का सबसे बड़ा कारण साबित हुई है।- ध्यम वर्ग, जिसने पहले राष्ट्रीय चुनावों में भाजपा और विधानसभा चुनावों में AAP का समर्थन किया था, इस बार केजरीवाल के साथ खड़ा नहीं हुआ।- AAP और कांग्रेस के बीच गठबंधन की कमी भी एक कारण रही है, क्योंकि 65 निर्वाचन क्षेत्रों में, कांग्रेस उम्मीदवारों की जमानत ‘जब्त’ हो गई, लेकिन फिर भी उन्होंने AAP को नुकसान पहुंचाया।- जर्जर सड़कें, ख़राब साफ़-सफ़ाई और अपर्याप्त जल आपूर्ति जैसे मुद्दे पार्टी के हार के बड़े कारण बने।- भ्रष्टाचार के आरोप और ‘शीश महल’ ने अरविंद केजरीवाल की ‘आम आदमी’ की छवि बदल दी।

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