चीन सीमा जैसा अब कुछ नहीं रह जाएगा? सिक्किम सांसद ने सरकार को सुझाया वो रास्ता, ऐसे तो समाप्त ही हो जाएगा ड्रैगन का प्रभाव

राष्ट्रीय जजमेंट

सिक्किम के सांसद दोरजी शेरिंग लेप्चा ने केंद्र सरकार से ‘चाइना बॉर्डर’ शब्द पर पुनर्विचार करने और इसके बजाय ‘तिब्बत सीमा’ का उपयोग करने का सुझाव दिया। राज्यसभा में बोलते हुए लेप्चा ने तर्क दिया कि लेह, लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश से सिक्किम तक 1,400 किलोमीटर की दूरी चीन के बजाय तिब्बत से लगती है। उन्होंने भारत सरकार और भारतीय सेना और सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) सहित सैन्य एजेंसियों से इस अंतर को आधिकारिक तौर पर मान्यता देने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि यह चीन की सीमा नहीं है, ये तिब्बत बॉर्डर है। लेप्चा ने इस बात पर जोर दिया कि सीमावर्ती क्षेत्रों में विकास में असमानता है। उन्होंने बताया कि जहां चीन ने अपनी तरफ गांवों और बुनियादी ढांचे का निर्माण किया है, वहीं भारतीय हिस्से में मुख्य रूप से प्रतिबंधित पहुंच वाले आरक्षित वन और वन्यजीव अभयारण्य हैं। लेप्चा ने कहा कि सीमावर्ती क्षेत्रों के पास, चीन ने गांवों का निर्माण किया है, जबकि भारत ने उनका उपयोग आरक्षित वनों और वन्यजीव अभयारण्यों के लिए किया है, और पहुंच प्रतिबंधित कर दी है। उन्होंने केंद्र सरकार से व्यापक समीक्षा करने और इन विकासात्मक असमानताओं को दूर करने के लिए कार्रवाई करने का आग्रह किया। इसके अतिरिक्त, लेप्चा ने केंद्र से नाथुला के माध्यम से कैलाश मानसरोवर यात्रा मार्ग को फिर से खोलने पर विचार करने का आग्रह किया, जो कुछ समय से बंद है। उन्होंने केंद्र से अपनी एजेंसियों को आधिकारिक तौर पर सीमा का नाम बदलकर तिब्बत सीमा करने का निर्देश जारी करने को कहा।

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