एक छोटी सी बात

कहते है कि हमारे जीवन में बहुत से प्रसंग आते है जब हम दुविधा में खड़े होते है । उस समय हम सही से चिन्तन करने की स्थिति में भी नहीं होते है । क्या करे ? कैसे करे ? कब करूँ ? कहाँ करूँ ? आदि – आदि के संशय में हम उलझ जाते है ।तब उस स्थिति में हमको सही से हमारे दिल की बात को सुनना समझना चाहिये और उसके अन्दर विराजित आत्मा की बात को सही से समझ हमे आत्मसात करना चाहिये ।

क्योंकि शुद्ध आत्मा में हमेशा भगवान का निवास होता है और वहाँ से निकली हुई बात को हम समझे तो वह हमको सही राह की और प्रशस्त्त कर सकता है ।

जब तक हम सही से जान न पाएगे जीवन का संघर्ष किसी व्यक्ति विशेष से या और किसी से नहीं बल्कि कर्म और आत्मा का है बाकी तो मात्र निमित्त है। जब इस बात को जानेंगे स्वत ही संशय वह दुविधा के घेरे से हम बाहर आ जाएंगे क्योंकि जब श्रृद्धा अटूट होगी तो हमको किसी भी चौराहे को पार करने में भी आसानी होगी।

एक निर्णय जीवन में गंभीरता और सहज भाव लाता है। हमें संयम और जागरूकता की दिशा दे जाता हैं। एक निश्चयी लक्ष्य से मेघाडंबर की भाँति जीवन में जो घटाघोप बरसे बिना बिखर जाता है और मन हिमालय की भाँति अडिग एक निर्णय हमारे जीवन को बदल सकता है और निर्णय ना लेना भी हमारे जीवन को बदल भी सकता है ।

 

समझदारी अवसर पर निर्णय और फिर क्रियान्विती है । तभी तो कहा है कि सही से चिंतन कर आत्मा जो कहती है वह सही कहती है क्योंकि वह दिल से बड़ी है और परमात्मा के बहुत नजदीक खड़ी है ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )

Comments are closed.

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More