शिवहर: भारत मे दहेज प्रथा सदियों से चली आ रही है।माना जाता है। कि यह प्रथा भारत मे मध्यकालीन अवधि से चल रही है.पर बहुतों को यह नहीं पता होगा यह प्रथा जैसी अभी है वैसी हमारे पुरखों ने नहीं चाही थी। वेद-ग्रंथों के अनुसार दहेज प्रथा को प्राचीन काल ‘स्त्रीधन ‘ बोला जाता था और इस पर अधिकार सिर्फ स्त्रीयों का ही होता था जो स्त्री के घरवाले अपनी इच्छा के अनुसार देते थे। पर आज के जमाने में सिर्फ एक व्यापार का माध्यम बनकर रह गया है जो काफ़ी दूखदायक है।
पिछले वर्ष 2021 में, दहेज प्रथा के कारण लगभग 6.8 हज़ार मौत हुई है। यही नहीं आँकड़े की माने तो हर दिन इस देश में कम से कम 20 महिलाओं की मौत होती है सिर्फ इस प्रथा के कारण। हालाकी, यह आँकड़े पहले के मुताबिक कम भी. हुए फिर भी इसकी पीड़ा अब भी महिलाएं और परिवार सहन कर रहें हैं।भारत सरकार ने इस पर रोक लगाने के लिए 1961 में, दहेज प्रतिषेध अधिनियम लागू किया था।
इसके वावजूद इतने सालों बाद भी वही हाल हैं वर्ष 2021 के अनुसार, उत्तर प्रदेश में अकेले 4,594 मामले दर्ज हुए वहीं बिहार में 3,362,कर्नाटक मे -1,845 और झाँरखंड में 1,805, जो कि बहुत ही संगीन आँकड़े है। इस विषय पर सरकार और जनता को मिलकर काम करना होगा क्योंकि यह बहुत ही गंभीर मामला है। इस प्रथा को जड़ से खत्म करना ही होगा नहीं तो यह समाज व परिवार को खोकला कर देगा।
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