गाजियाबाद:विकास प्राधिकरण (जीडीए) में भूखंड और भवनों के आवंटन में फर्जीवाड़े के मामले लगातार सामने आ रहे हैं। पहले स्वर्णजयंतीपुरम भूखंड आवंटन घोटाला और अभी हाल में पूर्व सचिव की तरफ से रिश्तेदारों को नियम के खिलाफ जाकर इंदिरापुरम में भूखंड आवंटित किए जाने का मामला गर्माया था। इसमें सभी के भूखंड को कैंसिल किए जाने की प्रक्रिया शुरू हो गई। अब इंदिरापुरम के शक्तिखंड-1 में 11 फ्लैट के आवंटन को लेकर सवाल उठ रहे हैं। जीडीए ने इन सभी फ्लैट को नीलामी में निकाला था। इसके कुछ समय बाद ही इन सभी 11 फ्लैट में से पांच के दावेदार सामने आए हैं। दावा आने के बाद जीडीए के अधिकारियों की टेंशन काफी बढ़ गई है। बताया जा रहा है कि जिन लोगों ने फ्लैट पर अपना दावा किया है।
उसके कागजात की जांच शुरू कर दी गई। फिलहाल अभी तक जीडीए के अधिकारी किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सके हैं।बताया जा रहा है कि जिस अधिकारी के हस्ताक्षर से सभी फ्लैट का आवंटन पत्र जारी किया गया है। उसे संबंधित अधिकारी से हस्ताक्षर को वेरिफाई करवाया जाएगा। इसके बाद ही आवंटन लेटर को लेकर कुछ फैसला किया जा सकता है। फिर भी यह सवाल उठ रहा है कि इन फ्लैटों के आवंटन की फाइल जीडीए से कहां गायब हो गई। इतने लंबे समय से जिन लोगों को भवन का आवंटन किया गया था, वहां कहा रह रहे थे। बताया जा रहा है कि अभी जिन लोगों ने इन फ्लैटों पर अपना दावा पेश है कि वह पावर ऑफ अटॉर्नी के नाम पर उनके नाम पर भवन को बेचा गया है।
मूल आवंटी द्वारा कोई दावा नहीं पेश किया गया है। जिसकी वजह से जीडीए के अधिकारियों को इस प्रकरण में और अधिक गड़बड़ी होने की संभावना लग रही है। इसलिए अभी इन भवनों की नीलामी को रोका गया है।जीडीए सूत्रों के मुताबिक प्रदेश सरकार ने 2003 में पावर ऑफ अटार्नी को प्रतिबंधित कर दिया है। इसके बाद जीडीए के बाबू कभी झारखंड तो कभी गोवा से पावर ऑफ अटार्नी का खेल करते थे। बाद में उन्होंने दिल्ली के सीलमपुर सब रजिस्ट्रार ऑफिस को पकड़ लिया। इसमें बाबू खुद ही फर्जी पावर ऑफ अटार्नी बनाते थे, बाद में उसका वेरिफिकेशन भी खुद ही कर देते थे। इससे लाखों रुपये की कमाई खुद कर लेते थे। जानकार कहते है कि इस प्रकरण की जांच कराई जाए तो बड़े घोटाले का खुलासा हो सकता है।
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