मोदी जी का जनविरोधी नीतियां, किसान विरोधी चरित्र

राष्ट्रीय जजमेंट न्यूज़

संवाददाता

जगदीश्वर चतुर्वेदी

मोदीजी का व्यक्तित्व जो संघ में जैसा था वैसा ही आज भी है. वे पहले  बुद्धिजीवी नहीं थे, बुद्धिजीवियों का सम्मान नहीं करते थे, औसत कार्यकर्ता के ढ़ंग से चीजें देखते थे, हिंदू राष्ट्रवाद में आस्था थी, विपक्ष को भुनगा समझते थे, हाशिए के लोगों के प्रति उनके मन में कभी सहानुभूति नहीं थी, सेठों-साहूकारों के प्रति सहानुभूति रखते थे, साथ ही उनके वैभव को देखकर ईर्ष्या भाव में जीते थे. ये सारी चीजें उनके व्यक्तित्व में आज भी हैं बल्कि पीएम बनने के बाद ये चीजें  ज्यादा मुखर हुई हैं. लेकिन एक बड़ा परिवर्तन हुआ है.

मोदीजी का तर्क है कि देखो जनता क्या कह रही है, मीडिया क्या कह रहा है और मैं क्या कह रहा हूं. हम तीनों मिलकर जो कह रहे हैं, वही सत्य है. यह मानसिकता और विचारधारा मूलतः अंधविश्वास की है. अंधविश्वासी इसी तरह के तर्क देते रहे हैं. जरा इतिहास उठाकर देखें, सत्य कहां होता है ? वास्तविकता यह है सत्य इन तीनों के बाहर होता है. सत्य वह नहीं है जो झुंड बोल रहा है. सत्य वह भी नहीं है जो नेता बोल रहा है या मीडिया बोल रहा है|

कहने का आशय यह है सत्य वह नहीं होता जो भीड़ कह रही है. कल्पना करो आर्यभट्ट ने सबसे पहले जब यह कहा कि पृथ्वी घूमती है और सूर्य की परिक्रमा लगाती है तो उस समय लोग क्या मानते थे ? उस समय सभी लोग यही मानते सूर्य परिक्रमा करता है. सभी ज्योतिषी यही मानते थे. उन दिनों राजज्योतिषी थे वराहमिहिर, उन्होंने आर्यभट की इस धारणा से कुपित होकर आर्यभट को कहीं नौकरी ही नहीं मिलने दी. तरह-तरह से परेशान किया. लेकिन आर्यभट ने सत्य बोलना बंद नहीं किया|

 

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