उमा के ‘‘कमल’’ से परेशन “कमलदल”…?

ओमप्रकाश मेहता

भोपाल। कभी भारतीय जनता पार्टी की ‘‘मिसाईल’’ मानी जाने वाली तेज-तर्रार नैत्री उमा भारती इन दिनों अपनी उपेक्षा से काफी परेशान है उनका सीधा सा कथन है कि ‘‘जिस काम को पूरी मेहनत से मैं पूरा करती हूँ, उसका श्रेय व लाभ कोई और उठा लेता है।’’ पिछले दिनों उन्होंने अपना यह दर्द अपने गृह जिले टीकमगढ़ में व्यक्त किया,

उनका कहना था कि उन्होंने आज से उन्नीस साल पहले कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह की एक दशक पुरानी सरकार को शिकस्त देकर भाजपा को सत्ता दिलवाई और उसका लाभ अभी तक अन्य कोई उठा रहा है, यही स्थिति केन-बेतवा नदी लिंक योजना तथा ललितपुर-सिंगरौली रेल लाईन के साथ भी है, इन दोनों की उनकी अपनी परियोजनाओं को मूर्तरूप देते समय उनकी उपेक्षा की जा रही है।

उल्लेखनीय है कि उमाजी ने 2002 में दिग्विजय सिंह के वर्चस्व को खत्म कर अपनी सरकार बनाई थी, किंतु वे कुछ ही महिनों मुख्यमंत्री रह पाई थी और एक गैर-जमानती अदालती वारंट के कारण उन्हें इस्तीफा देकर स्व. बाबूलाल गौर को सत्ता सौंपना पड़ी थी, बाबूलाल जी भी एक ही साल मुख्यमंत्री रह पाए और 2005 में शिवराज जी मुख्यमंत्री बन गए और वे आज भी मुख्यमंत्री है। बाद में उमाजी ने भाजपा से बाहर आकर भारतीय जनशक्ति पार्टी बनाई और चुनाव भी लड़ा।

भाजपा में जब वापसी हुई तो उन्हें मध्यप्रदेश की सक्रिय राजनीति से बाहर रहना पड़ा और फलतः वे उत्तरप्रदेश की होकर रह गई, वे केन्द्र में मंत्री भी रही, किंतु 2019 में उन्हें पार्टी ने टिकट से वंचित कर दिया तभी से वे अपने आपको उपेक्षित महसूस कर रही है और इसी उपेक्षा के चलते अब उन्हें कहना पड़ रहा है कि ‘‘सरकार मैं बनाती हूँ, चलाता कोई और है।’’

उमाजी की इसी उपेक्षा के बीच पिछले दिनों एक और वाक्या हो गया, उमाजी का गाया एक तीस साल पुराना भजन है जिसके बोल ‘‘तेरे चरण कमल में श्याम लिपट जाऊँ रज बनके’’ पिछले दिनों शिवराज जी को इस भजन की याद आई और उन्होंने उमाभारती  से उसका वीडियों मांग लिया, उमाजी ने अपना गाया हुआ वीडियों शिवराज जी को भेज दिया, किंतु इस भजन के बोल में जो ‘कमल’ शब्द का प्रयोग हुआ है उसे लेकर ‘कमलदल’ (भाजपा) में खलबली मच गई है, क्योंकि मध्यप्रदेश ‘कमल’ शब्द को लेकर काफी संवेदनशील है, कमलनाथ चूंकि कांग्रेस के मुख्यमंत्री रहे है, इसलिए भी यहां ‘कमल’ को लेकर काफी चर्चाएं होती है। अब उमाजी की उपेक्षा के दौर में उनके इस भजन को लेकर सियासत का दौर गर्म है।

वैसे उमा भारती जी का भी मध्यप्रदेश में एक ‘राजनीतिक युग’ रहा है। भाजपा की संस्थापक स्व. राजमाता विजयराजे सिंधिया के आग्रह पर उमाजी ने भाजपा में प्रवेश किया था, वे अपने व्यक्तिगत जीवन में साध्वी है तथा बाल्यकाल से प्रवचन करती आ रही है, उनके प्रवचन से ही प्रभावित होकर राजमाता ने उन्हें राजनीति में आने का न्यौता दिया था, वे अटल-अड़वानी के ‘युग’ में काफी प्रभावशाली नैत्री रही और पार्टी की वरिष्ठ नैत्री मानी जाती रही, किंतु पार्टी मौजूदा नैतृत्व के दौर में उमाजी को ‘समयानुकूल’ नहीं मान रही और यही उन्हें पिछले लोक सभा चुनावों के समय टिकट नहीं देनेक का मुख्य कारण रहा। किंतु अब उन्होंने अभी से 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है और भाजपा की राजनीति में उनकी ‘जिद’ काफी विख्यात भी है,

इसलिए वे हर हाल में लोकसभा चुनाव लड़ने की घोषणा को मूर्त रूप देगी, अब उन्हें ‘रणक्षेत्र’ कौन सा मिलता है, वह वे स्वयं चुनेगी या पार्टी यह उस समय की स्थिति-परिस्थिति पर निर्भर रहेगा, वे चुनाव अवश्य लड़ेगी।

वैसे यदि मौजूदा राजनीतिक माहौल के अनुसार उमाजी की इस घोषणा व उनके कथनों का सूक्ष्म परीक्षण किया जाए तो यह माना जा रहा है कि केन्द्रीय नेतृत्व की तरह वे मध्यप्रदेश पार्टी नेतृत्व से भी उपेक्षित ही है, उनकी नाराजी व मौजूदा तेवर का भी यही कारण है। उनकी मुख्य पीड़ा भी यही है,

उनका मानना है कि आड़वानी-मुरली मनोहर जोशी की तरह मौजूदा नेतृत्व में उन्हें (उमाजी को) भी राजनीति के ‘कूडे़दान’ में डालने की कौशिश की है, किंतु एक जिद्दी व हटी साध्वी के तेवर को नेतृत्व ने महसूस नहीं किया है और वे अब चुप बैठने वाली भी नहीं है, उन्होंने अपने मौजूदा तेवरों से अपनी नाराजी का सिर्फ ‘‘ट्रेलर’’ दिखाया है जिस दिन पूरी फिल्म सामने आएगी तब मौजूदा नेतृत्व को उमाजी की सही तस्वीर नजर आएगी।

इस तरह भारतीय जनता पार्टी में उमाजी ने बगावती रूख दिखाकर पार्टी के उन सभी उपेक्षित नेताओं को एक जूटता का संदेश भी दिया है, जिन्हें मजबूरी में अपने घरों में कैद होकर रहना पड़ रहा है। अब उमाजी की राजनीति क्या गुल खिलाती है यह तो भविष्य के गर्भ में है, किंतु उमाजी क्या कर सकती है? यह सभी अच्छी तरह जानते है।

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