बारुरेवा नदी पुनर्जीवन के नाम पर नेताओं, अफसरों ने किया फर्जीवाड़ा, छह करोड़ खर्च, नदी भी सूखी

नरसिंहपुर। नदी पुनर्जीवन के नाम पर नेताओं और अफसरों ने किस कदर फर्जीवाड़ा किया इसका उदाहरण बारुरेवा नदी है। पिछले 3 साल में पुनर्जीवन के नाम पर 6 करोड़ रुपए से अधिक खर्च कर दिए गए लेकिन नदी में एक बूंद पानी भी नहीं ला सके हैं। और तो और नदी के बहाव क्षेत्र में अतिक्रमण पर भी आंखें मूंदें रहे।नतीजतन नदी के बहाव क्षेत्र में फसलें उगने लगी। नदी का अस्तित्व ही कठोतिया के पास खत्म नजर आ रहा है।

ये खुलासा दैनिक समाचार पत्र के पत्रकार ने किया है। उनके द्वारा सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत जिला पंचायत की तकनीकी समिति से नदी पुनर्जीवन संबंधी जानकारी मांगी गई थी। जिसके बदले करीब साढ़े 350 पेज की जानकारी उपलब्ध कराई गई। हैरत की बात ये है कि इन पन्नों में अधिकांश काम खेतों में मेड़ बंधान के दर्शाए गए हैं, जबकि शहर के आसपास पंचायतों में ही इक्का-दुक्का तालाब, माइक्रो वाटर शेड का निर्माण किया गया।

स्टापडेम, रिचार्ज वेल जैसे दर्जनों संरचनात्मक काम नहीं किये गए। इससे भी बड़ी बात ये है कि जिन खेतों में मेड़ बंधान का जिक्र किया गया है उनमें से कई किसानों को जानकारी तक नहीं है। दस्तावेजों के अनुसार पिछले तीन साल में बारूरेवा नदी का जलस्तर, कैचमेंट एरिया को बढ़ाने के नाम पर नरसिंहपुर व करेली की चयनित 54 पंचायतों में 90 प्रतिशत से अधिक काम खेतों में मेढ़बंधान के किए गए हैं। जिला मुख्यालय की समीपी दो-तीन पंचायतों में ही माइक्रो वाटरशेड, तालाब निर्माण के काम दिख रहे हैं, जबकि शेष पंचायतों में अधिकांश काम कागजी ही हैं।

इन्होंने दी थी योजना की स्वीकृति

18 नवंबर 2019 को जिला पंचायत ने बारूरेवा नदी पुनर्जीवन योजना प्रस्तावित की थी। इसमें 20 हजार 389 कार्य चयनित किए गए थे। इसमें 63 माइक्रो वाटरशेड भी बनाए जाने थे। इस कार्ययोजना पर जिला पंचायत अध्यक्ष संदीप पटेल और तत्कालीन सीईओ कमलेश भार्गव ने मुहर लगाई थी। हालांकि पहले चरण में 1959 कार्यों को स्वीकृति दी गई, जिसके लिए करीब 22 करोड़ 78 लाख बजट रखा गया।

ये सभी काम नरसिंहपुर की 25 व करेली विकासखंड की 29 ग्राम पंचायतों में मनरेगा व अन्य योजनाओं से किए जाने थे। ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार उपलब्ध कराना था, जो नहीं हो सका। योजना के क्रियान्वयन से ही गड़बड़ियां सामने आने लगीं। शिकवा-शिकायतें हुईं, लेकिन जिला पंचायत अध्यक्ष और तत्कालीन सीईओ आंखें मूंदे रहे। एक तरह से उनकी गड़बड़ियों पर मूक सहमति रही।

अब तक लगे बिलों की होगी जांच

वर्ष 2019 से लेकर अब तक नदी पुनर्जीवन के लिए जहां-जितना खर्चा हुआ है, उसके कहाँ-कहाँ, कितने के बिल लगे हैं, किसे कितना भुगतान हुआ है, इसे लेकर जल्द जांच शुरु हो सकती है। जिला पंचायत सीईओ संजय सौरभ सोनवणे भी गड़बड़ियों से इनकार नहीं कर रहे हैं। उनका कहना है कि बिलों व उनके भुगतान की जांच कराई जाएगी। उन्होंने ये भी कहा कि नदी पुनर्जीवन के लिए मौजूदा डीपीआर में संरचनात्मक विकास पर जोर नहीं था, इसलिए अब सिरे से डीपीआर बनाई जाएगी।

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