मगरमच्छों द्वारा अपने हिस्से को हड़पे जाने से जान देने को मजबूर हो रही छोटी मछलियां

मनीष पाण्डेय की मौत ने वकीलों के आर्थिक हालात की सच्चाई के साथ – साथ वकालती पेशे में पसरी गन्दगी को भी उजागर करके रख दिया है । वकालती पेशे में भी जिस क़दर मगरमच्छ और बड़ी मछलियां छोटी मछलियों के हिस्से को हड़प कर जाती हैं उससे छोटी मछलियों के पास यही एक आसान रास्ता बचता है जैसा मनीष पाण्डेय ने उठाया है जो जनचर्चा में सुनाई दे रहा है ।
कोरोना की पहली लहर के चलते बाधित हुई अदालती कार्यवाही से पैदा हुए असामान्य आर्थिक हालात से किसी तरह वकीलों ने सामना किया । जिला और तहसील अदालतों में वकालत करने वाले औसत दर्जे के वकीलों ने कोरोना से अपने पारिवारिक दायित्वों को पूरा करने में अपनी जमा पूंजी खर्च कर दी । मगर कोरोना की दूसरी लहर ने तो औसत दर्जे के वकीलों को तो सड़क पर लाकर खड़ा कर दिया ।

सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट और जिला कोर्टों के गले तक भरे वकीलों की सेहत पर कोई प्रभाव पड़ा है ऐसा दिखाई तो नहीं दिया हां बाकी बचे वकीलों की तो कमर ही तोड़कर रख दी है कोरोना की दूसरी लहर ने ।

यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि अपनी राजनीति चमकाने में मशगूल राष्ट्रीय से लेकर जिला स्तर तक के अधिवक्ता संघों ने आम वकीलों की आर्थिक मदद करने के लिए बतोलेबाजी के अलावा कुछ नहीं किया ।

सरकार तो वैसे भी वकीलों की भलाई के लिए कुछ करना ही नहीं चाहती है । सबसे बड़ा उदाहरण तो यही है कि आये दिन हो रहे हमलों में वकीलों की जान जाने के बाद भी आजतक एडवोकेट प्रोटेक्शन एक्ट तक लागू नहीं किया गया है ।
कोरोना काल में आर्थिक संकट से जूझ रहे वकीलों के लिए जब सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगायी थी तो सुप्रीम कोर्ट ने भी वकीलों से दोयम दर्जे का व्यवहार करते हुए कुत्तों की तरह दुत्कार कर भगा दिया गया था ।

वैसे इस सब के लिए काफी हद तक वकील ही जिम्मेदार कहा जा सकता हैं । पैसा कमाने की होड़ में कई वकीलों ने वकालत के सम्मानित पेशे को देह व्यापारी पेशे से भी निम्नतर बनाकर रख दिया है । यहां भी मानवीय मूल्यों की जगह दानवीय मूल्यों को ज्यादा तरजीह दी जाने लगी है । नए और औसत दर्जे की वकालत कर रहे वकीलों के केसों को तोड़ने में कोई संकोच नहीं किया जाता है ।
यह कहना गलत नहीं होगा कि वकालत की कुछ श्रेणियों में तो वकालत की जगह विशुद्ध दलाली की जाती है, सौदेबाज़ी की जाती है । जो सामान्य स्तर के वकील को अंतिम यात्रा करने पर मजबूर कर देती है ।

मनीष पाण्डेय वकील द्वारा उठाया गया आत्मघाती कदम दानवीय मूल्यों की ओर बढ़ चुके कदमों को मानवीय मूल्यों की ओर मोड़ सकेगा क्या ?

अश्वनी बड़गैंया, अधिवक्ता
स्वतंत्र पत्रकार

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