एक मुस्लिम मां ने उठाई आवाज कहा मेरा खतना हुआ बेटी का नहीं होने दूंगी

महिलाओं का ख़तना मिस्र में साल 2008 से  बैन है  लेकिन अभी भीरुढ़िवादी मुसलमानों के बीच महिलाओं को तब तक “अशुद्ध” और “शादी के लिए नहीं तैयार” माना जाता है जब तक उनका ख़तना न किया जाए. हालांकि क़ानूनी तौर ख़तना करने का दोषी पाए गए डॉक्टरों को सात साल तक की सज़ा सुनाई जा सकती है. इसके अलावा ख़तना करने की मांग करने वालों को भी तीन साल तक की सज़ा सुनाई जा सकती है.

लायला 11 साल की थीं जब उनका ख़तना किया गया. तीन दशक बाद भी वो उस भायवह दिन को नहीं भूल पातीं. उसी समय उनके स्कूल की परीक्षाएं ख़त्म हुईं थीं.वो कहती हैं, “मेरे अच्छे नंबरों के लिए बधाई देने के बजाय मेरा परिवार मेरे लिए एक दाई ले आया, उसने काले कपड़े पहने थे, मुझे एक कमरे में बंद कर दिया गया और सबने मुझे घेर लिया.”उनकी दादी और पड़ोसी इस दौरान वहीं मौजूद थे.

“मैं खेलना और आज़ाद महसूस करना चाहती थी, लेकिन मैं ठीक से चल भी नहीं पा रही थी, मुझे दोनों पैरों को फैला के चलना पड़ रहा था.

जब वो बड़ी हुईं और उनकी शादी हुई, तब उन्हें समझ आया इस प्रथा का पालन नहीं करने के क्या ‘दुष्परिणाम’ हैं.

लायला के मुताबिक जिन महिलाओं का ख़तना नहीं होता उन्हें गांव में “ग़लत महिला” माना जाता है. वहीं जिनका ख़तना हुआ होता हैं, उन्हें “एक अच्छी महिला” का दर्जा दिया जाता है.वो कहती हैं, “इसका अच्छे व्यवहार से क्या संबंध?”मानवाधिकार वकील रेडा एल्डनबुकी जो काहिरा के विमन्स सेंटर फ़ॉर गायडेंस एंड लीगल अवेयरनेस यानी डब्लूसीजीएलए के अध्यक्ष हैं, उनके मुताबिक़ इस प्रथा का पालन अक्सर प्लास्टिक सर्जरी की आड़ में किया जाता रहा है.

महिलाओं की ओर से दायर किए गए तीन हज़ार मामलों में से कई डब्लूसीजीएलए ने जीते हैं. इनमें छह ख़तना से जुड़े मामले हैं.

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