उच्च न्यायालय के फटकार पर प्रशासन ने बदली नीतियां, अब कोरोना मरीजों को अस्पताल में भर्ती हेतु आधार कार्ड एवं 108 की सेवा आवश्यक नहीं

आर जे न्यूज़-

अहमदाबाद गुजरात। गुजरात उच्च न्यायालय के फटकार के बाद प्रशासन ने कोरोना संक्रमित मरीजों के लिए महत्वपूर्ण निर्णय लिया है जिसके अनुसार अहमदाबाद के अस्पतालों में भर्ती होने के लिए अहमदाबाद का आधार कार्ड होना आवश्यक नहीं होगा। इसके अलावा 108 एम्बुलेंस के सिवाय निजी वाहनों में आने वाले मरीजों को भी अस्पताल में भर्ती किया जाएगा।

खाली बेड की जानकारी अस्पताल के बाहर उपलब्ध कराना होगा और कोविड अस्पताल मरीज का उपचार करने से मना नहीं करेगें। राज्य के अतिरिक्त सचिव डॉक्टर राजीव कुमार गुप्ता की अध्यक्षता में आयोजित बैठक में यह महत्वपूर्ण निर्णय मरीजों को परेशानी से बचाने के लिए लिया गया है। कोविड अस्पताल में भर्ती होने के लिए 108 एम्बुलेंस में ही आना है यह नियम निरस्त कर दिया गया है।

सरकारी, निजी अस्पताल और डेजिग्नेटेड हास्पिटल में मरीज कैसे भी पहुंचे बेड की उपलब्धता के आधार पर उसे भर्ती करना अनिवार्य होगा। निजी अस्पतालों के 75 प्रतिशत बेड कोविड मरीजों के लिए आरक्षित रहेगें, इस प्रक्रिया से लोगों के लिए एक हजार नये बेड उपलब्ध होगें। अब 108 के नियंत्रण कक्ष में महानगर पालिका और राज्य सरकार के स्वास्थ्य अधिकारी संयुक्त रुप से अपने कर्त्तव्य का निर्वहन करेगें। इमरजेन्सी वाले कोरोना संक्रमित मरीजों का इलाज कोविड अस्पतालों को तत्काल प्रभाव से करना होगा। कोई टेक्निकल या अन्य कारण बता कर उपचार करने से इन्कार नहीं करना होगा।

उल्लेखनीय है कि कोरोना महामारी को लेकर होने वाली परेशानियों के संबंध सुओमोटो की सुनवाई के दौरान गुजरात उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश विक्रम नाथ और भार्गव डी करियानी की खंडपीठ ने कहा था कि सरकार आइवरी टावर में बैठकर नीतियां तैयार करने के बजाय जमनी हकिकत पर कार्य करे। सरकार गुलाबी चित्र कागजों पर दिखाती है जो वास्तविकता से बिल्कुल परे है। वर्तमान परिदृश्य में वास्तविकता को समझ कर कार्य करने की जरुरत है। खंडपीठ ने कहा कि न्यायालय यह नहीं कहता कि सरकार कुछ नहीं कर रही है, लेकिन जो भी प्रयास किया जा रहा है उसमें पारदर्शिता नहीं है। सरकार गंभीरता पूर्वक यथार्थ को समझ कर कार्य करेगी तो लोग अस्पताल के बाहर कतार में इलाज के अभाव में नहीं मरेगें।

रेमडेसिविर इंजेक्शन की तंगी को लेकर न्यायालय ने कहा कि यदि एक मरीज के इलाज का डोज छह इंजेक्शन है तो उसे मिलना आवश्यक है। केवल उसे दो इंजेक्शन दे कर छोड़ देना मझधार में छोड़ने के समान है। लॉकडाउन के संबंध में न्यायालय ने कहा कि यह जर्मन या लंदन नहीं, बल्कि भारत है ।यहां एक दिन किसी को भोजन न मिले तो लॉकडाउन का मतलब समझ में आ जाता है। लोगों को स्वयं संयमित होकर घरों में रहना चाहिए। अतिआवश्यक होने पर ही बाहर निकलना चाहिए। जहाँ लोग नियम का पालन नहीं करते वहां सरकार लॉकडाउन लगा सकती है। सरकार ही सब कुछ नहीं कर सकती लोगों को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी।

सरकार की ओर से एडवोकेट जनरल ने भी न्यायालय के समक्ष यह स्वीकार किया कि परिस्थिति खराब है। सरकार परिस्थिति में सुधार लाने का प्रयास कर रही है। राज्य में इंजेक्शन, बेड, आक्सीजन, एम्बुलेंस और डॉक्टर सहित अन्य स्टाफ की कमी है। 1200 बेड वाले अस्पताल में सभी मरीजों को भर्ती किया जाता चाहें वह राज्य के किसी भी भाग सो आया हो। आक्सीजन प्लान्ट की अनुमति केन्द्र सरकार देती है। राज्य में आठ प्लान्ट की अनुमति मिली थी जिसमें एक को ब्लैक लिस्ट किया गया है। चार प्लांट कार्यरत हैं शेष तीन मई तक चालू हो जाएगें।

ओमप्रकाश यादव की रिपोर्ट 

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