निरंकारी संत समागम: लाखों श्रद्धालुओं ने साकार किया मानवता का अनुपम दृश्य

समालखा: परमात्मा के अहसास से आत्ममंथन को सरल बनाने का संदेश देते हुए सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने रविवार को 78वें वार्षिक निरंकारी संत समागम के दूसरे दिन लाखों श्रद्धालुओं को संबोधित किया। चार दिवसीय इस भव्य आयोजन में देश-विदेश से एकत्रित मानव परिवार सौहार्दपूर्ण व्यवहार से विश्वबंधुत्व की मिसाल पेश कर रहा है।

सतगुरु माता ने कहा, ‘‘आत्ममंथन अपने भीतर झांकने की साधना है, जो परमात्मा के सिमरण से सहज हो जाती है।’’ उन्होंने स्पष्ट किया कि भावनाओं के वशीभूत होकर हम आसान कार्यों को भी जटिल बना देते हैं, किंतु प्रभु अहसास से मन में अकर्ता भाव जागृत होता है और हर कार्य पूर्णता की ओर बढ़ता है।

दिनभर की घटनाओं पर चिंतन करते हुए माता ने कहा कि मधुर वचन मोह लेते हैं तो कटु वचन ठेस पहुंचाते हैं। कौन सी बात ग्रहण करनी है, यह विवेक से तय करना चाहिए। ब्रह्मज्ञानी सकारात्मक चुनाव से शांति प्राप्त करते हैं। पहाड़ों पर गूंजती प्रतिध्वनि का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा, ‘‘दूसरों से जैसा व्यवहार करेंगे, उसकी प्रतिक्रिया हमें ही भुगतनी पड़ती है। इसलिए व्यवहार ऐसा हो जो सुखदायी प्रतिफल दे।’’ अंत में उन्होंने जोर दिया कि निरंकार से जुड़ाव आंतरिक शांति और बाहरी व्यवहार को दिव्य बनाता है।

इससे पूर्व निरंकारी राजपिता ने कहा कि परमात्मा सार्वभौमिक सत्य है, इसमें दृष्टिकोण का प्रश्न नहीं उठता। जैसे सूरज पूर्व से उदय होता है, वैसे ही परम सत्य एक है। वेद-शास्त्र इसका प्रमाण हैं। सतगुरु ही इस सत्य का बोध कराते हैं, इसलिए प्रत्येक मानव को समय रहते इसे प्राप्त करना चाहिए।

निरंकारी प्रदर्शनी बनी आकर्षण का केंद्र  

समागम में आधुनिक तकनीक व लाइट्स से सजी निरंकारी प्रदर्शनी श्रद्धालुओं को आकर्षित कर रही है। तीन भागों में विभाजित यह प्रदर्शनी मिशन का इतिहास, सतगुरु की कल्याण यात्राएं व ‘आत्ममंथन’ पर आधारित मॉडल प्रस्तुत कर रही है। बाल प्रदर्शनी बच्चों की समस्याओं का आध्यात्मिक हल सुझा रही है, जबकि एसएनसीएफ खंड स्वास्थ्य, सुरक्षा व सशक्तिकरण पर केंद्रित सामाजिक कार्यों को दर्शाता है। सादा विवाह जैसे कार्यक्रमों से समाज सुधार की झलक मिल रही है।

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