जम्मू-कश्मीर विधानसभा ने अवैध मकानों को वैध करने वाला निजी विधेयक किया खारिज, लोकायुक्त मुद्दे पर गर्मागर्म बहस

राष्ट्रीय जजमेंट

जम्मू-कश्मीर विधानसभा का सत्र आज कई विवादास्पद मुद्दों, क्षेत्रीय असमानता के आरोपों और सरकार की जवाबदेही पर तीखी बहसों से भरा रहा। दिनभर चली कार्यवाही में सरकार ने दो निजी विधेयकों को खारिज कर दिया। इनमें एक निजी विधेयक सरकारी भूमि पर अवैध निर्माणों को वैध ठहराने और दूसरा लोकायुक्त की नियुक्ति से संबंधित था। इसके अलावा, भाजपा और पीडीपी विधायकों ने शिक्षा विभाग में भेदभाव, सामाजिक श्रेणी प्रमाणपत्रों में असमानता और हाल की बाढ़ पर चर्चा की मांग को लेकर हंगामा किया।
हम आपको बता दें कि पुलवामा से पीडीपी विधायक वहीद पारा द्वारा पेश किया गया विधेयक, जिसमें सरकारी और साझा जमीनों पर बने मकानों को मालिकाना हक देने की बात कही गई थी, सदन ने ध्वनिमत से खारिज कर दिया। मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा कि “ऐसे विधेयक से जमीन हड़पने का रास्ता खुलेगा”। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत भूमिहीनों को पहले से ही राहत दी जा रही है।
इसके अलावा, माकपा विधायक एमवाई तारिगामी ने भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के लिए लोकायुक्त की नियुक्ति का निजी विधेयक पेश किया, लेकिन मुख्यमंत्री ने स्पष्ट किया कि “केंद्र शासित प्रदेश के पास ऐसा संवैधानिक अधिकार नहीं है।” अब्दुल्ला ने कहा कि जब राज्य का दर्जा बहाल होगा, तब ऐसी व्यवस्था संभव होगी।

इसी दौरान वहीद पारा ने एक अन्य प्रश्न के जरिए जम्मू और कश्मीर के बीच सामाजिक श्रेणी प्रमाणपत्र जारी करने में भारी असमानता का मुद्दा उठाया। सरकार द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार, अनुसूचित जाति (एससी) प्रमाणपत्रों में जम्मू का हिस्सा 99 प्रतिशत से अधिक है, जबकि कश्मीर में यह 1 प्रतिशत से भी कम। पारा ने इसे “समानता और प्रशासनिक निष्पक्षता के उल्लंघन” की संज्ञा दी।

वहीं भाजपा विधायक शक्ति परिहार ने शिक्षा विभाग में तबादलों में क्षेत्रीय भेदभाव का आरोप लगाया, जिस पर शिक्षा मंत्री सकीना इट्टू ने कहा कि भेदभाव का रोना रोना भाजपा की आदत है। उन्होंने बताया कि जम्मू में 860 तथा कश्मीर में 350 नई नियुक्तियां की गई हैं। इसके अलावा, भाजपा सदस्यों ने हाल की बाढ़ और उससे हुए 209 करोड़ रुपये के नुकसान पर चर्चा की मांग को लेकर भी हंगामा किया, जिसे अध्यक्ष अब्दुल रहीम राठेर ने “पुराना मामला” बताते हुए अस्वीकार कर दिया। तीखी नोकझोंक और आरोप-प्रत्यारोपों के बावजूद, सदन की कार्यवाही सामान्य रूप से चली और सभी प्रस्ताव औपचारिक रूप से निपटा दिए गए।

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