नौकरी और गैस एजेंसी का झांसा देकर गैंग ने उड़ाए लाखों, गाजियाबाद पुलिस ने तोड़ा जाल, 7 राज्यों में 700 फर्जी लेटर, 4 पकड़े गए

गाजियाबाद: यह खबर उन चमकते सपनों की है, जो लाखों लोगों के दिलों में बसते हैं—अपना कारोबार, एक अच्छी नौकरी, और आर्थिक स्थिरता। लेकिन कुछ शातिर दिमाग इन सपनों को हथियार बनाकर लोगों की मेहनत की कमाई पर डाका डालते हैं। गाजियाबाद के विजय नगर इलाके में ऐसा ही एक साइबर ठगी का जाल बिछा था, जिसे थाना साइबर क्राइम पुलिस ने अपनी तत्परता से तोड़ दिया। चार शातिर ठग—राहुल यादव, शुभम सिंह चौहान, रविंद्र कुमार, और हेमेंद्र—पुलिस की गिरफ्त में हैं। उनके कब्जे से 11 मोबाइल फोन, 6 चेकबुक, 8 एटीएम कार्ड, एक पासबुक, 337 फर्जी गैस एजेंसी आवंटन पत्र, और एक चमचमाती होंडा अमेज कार बरामद हुई। यह गिरोह सात राज्यों में 30 लाख रुपये की 11 साइबर ठगी की घटनाओं को अंजाम दे चुका था।

जाल की शुरुआत: लालच और चालाकी का खेल

राहुल यादव (34) और शुभम सिंह चौहान (29) इस साइबर ठगी के गिरोह के सरगना थे। दोनों की जिंदगी में एक वक्त ऐसा आया जब प्राइवेट नौकरियों की मामूली कमाई उनकी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए काफी नहीं थी। अधिक पैसे कमाने की चाह ने उन्हें साइबर अपराध की काली राह पर धकेल दिया। राहुल और शुभम ने अपने साथ हेमेंद्र (36) और रविंद्र कुमार (28) को जोड़ा। यह गिरोह संगठित तरीके से काम करता था, जहां हर सदस्य की भूमिका तय थी।

रविंद्र का काम था फर्जी सिम कार्ड और बैंक खातों की व्यवस्था करना। वह ठगी के लिए जरूरी ‘टूल्स’ जुटाता, जैसे फर्जी आईडी पर सिम कार्ड और बैंक खाते। वहीं, शुभम और राहुल कॉल सेंटर की तर्ज पर लोगों को फोन करते। वे खुद को रिलायंस, इंडियन ऑयल, हिंदुस्तान पेट्रोलियम, और भारत पेट्रोलियम जैसी नामी गैस कंपनियों का प्रतिनिधि बताते। “सर, आपको गैस एजेंसी मिल सकती है, बस रजिस्ट्रेशन के लिए कुछ फीस जमा करनी होगी,” या “हम आपको कंपनी में अच्छी नौकरी दिलवा सकते हैं,” जैसे मीठे बोलों से वे लोगों को अपने जाल में फंसाते।

जाल बिछाने का तरीका: तकनीक और धोखे का कॉकटेल

इस गिरोह की चालाकी का आलम यह था कि वे अपने शिकार को चुनने में भी माहिर थे। क्विकर जैसे प्लेटफॉर्म और सोशल मीडिया से डेटा चुराकर वे लोगों के नंबर और पर्सनल जानकारी जुटाते। फिर फर्जी सिम कार्ड से कॉल करते। शुभम सिंह चौहान ‘प्रतीक अग्रवाल’ और राहुल यादव ‘सुभाष चंद्रा’ बनकर लोगों से बात करते। विश्वास जीतने के लिए वे सोशल मीडिया से प्रोफेशनल लोगों की तस्वीरें डाउनलोड कर अपनी व्हाट्सएप डीपी पर लगाते। इससे कॉल रिसीव करने वाले को लगता कि वह किसी विश्वसनीय व्यक्ति से बात कर रहा है।

एक बार जब शिकार बातचीत में रुचि दिखाता, तो उसे गैस एजेंसी आवंटन फॉर्म भरने के लिए कहा जाता। इसके बाद रजिस्ट्रेशन फीस, सिक्योरिटी डिपॉजिट, या अन्य शुल्क के नाम पर पैसे मांगे जाते। ठग इतने शातिर थे कि वे सरकारी वेबसाइट की तस्वीरें और फर्जी गैस एजेंसी आवंटन पत्र व्हाट्सएप पर भेजकर लोगों को यकीन दिलाते कि यह पूरी प्रक्रिया वैध है। पीड़ितों को फर्जी पीडीएफ फाइलें भेजी जातीं, जिनमें रिलायंस, इंडियन ऑयल, हिंदुस्तान पेट्रोलियम, और भारत पेट्रोलियम के लोगो और फर्जी अनुमोदन पत्र होते। पूछताछ में सामने आया कि इस गिरोह ने 700 से ज्यादा ऐसे फर्जी पत्र बनाए।

दक्षिण भारत क्यों बना टारगेट?

पूछताछ में अभियुक्तों ने एक हैरान करने वाला खुलासा किया। उन्होंने बताया कि उत्तरी भारत के लोग उनके कॉल पर जल्दी भरोसा नहीं करते। वे सवाल पूछते हैं, कंपनी से वेरिफिकेशन करते हैं, और पैसे जमा करने से पहले कई बार सोचते हैं। लेकिन दक्षिण भारत, खासकर केरल, तमिलनाडु, और तेलंगाना के लोग, उनके जाल में आसानी से फंस जाते थे। यही वजह थी कि गिरोह ने दक्षिण भारत को अपना मुख्य निशाना बनाया।

जैसे, केरल के अनूप के.वी. से तीन बार में 12,12,982 रुपये ठगे गए। तमिलनाडु के बालासुब्रमण्यम को नौकरी का झांसा देकर फर्जी नियुक्ति पत्र थमाया गया। जब वह जॉइन करने पहुंचा, तो उसे ठगी का पता चला। तमिलनाडु के ही विबिन देवा से 20,650 रुपये और आदिल से 4,650 रुपये ठगे गए। इस तरह सात राज्यों—चंडीगढ़, राजस्थान, केरल, तमिलनाडु, तेलंगाना, महाराष्ट्र, और गुजरात—में लोगों को ठगा गया।

पीड़ितों की कहानियां: सपनों का टूटना

इस साइबर ठगी की कहानी में कई ऐसे लोग हैं, जिनके सपने इस गिरोह ने चकनाचूर कर दिए। चंडीगढ़ के विश्वानंद ने गैस एजेंसी के लिए 3,100 रुपये जमा किए, यह सोचकर कि वह जल्द ही अपना कारोबार शुरू करेंगे। राजस्थान के राजकुमार मीणा ने 7,89,725 रुपये गंवाए। महाराष्ट्र के प्रभाकर भीमराव इंगले ने भारत पेट्रोलियम की गैस एजेंसी के नाम पर 9,43,200 रुपये का भुगतान किया। तेलंगाना के गुंटुका रघुवीर और हनुमंत राव से क्रमशः 15,500 रुपये ठगे गए। गुजरात के नवनीत महेरा और केरल के फाजिल करीम जैसे कई लोग छोटी-छोटी रकम के साथ ठगी के शिकार हुए।

तमिलनाडु के बालासुब्रमण्यम की कहानी तो और भी दुखद है। उन्हें ONGC में नौकरी का ऑफर मिला। फर्जी नियुक्ति पत्र लेकर वह ऑफिस पहुंचे, लेकिन वहां जाकर पता चला कि यह सब धोखा था। पहले 9,500 रुपये जमा करवाए गए, फिर 65,300 रुपये की मांग की गई। जब उन्होंने वेरिफिकेशन के लिए समय मांगा, तो ठगों ने दबाव बनाया। आखिरकार, जॉइनिंग के दिन उन्हें ठगी का शिकार होने का एहसास हुआ।

पुलिस की दबिश और टूटा जाल

थाना साइबर क्राइम पुलिस, गाजियाबाद को इस गिरोह की भनक तब लगी, जब कई पीड़ितों ने शिकायत दर्ज की। पुलिस ने तुरंत जांच शुरू की। तकनीकी निगरानी और सूत्रों की मदद से पुलिस को विजय नगर इलाके में ठगों के ठिकाने का पता चला। एक सुनियोजित छापेमारी में चारों अभियुक्तों को धर दबोचा गया। उनके पास से बरामद सामान ने पुलिस को भी हैरान कर दिया—337 फर्जी गैस एजेंसी आवंटन पत्र, 11 मोबाइल फोन, 8 एटीएम कार्ड, 6 चेकबुक, एक पासबुक, और एक होंडा अमेज कार।

पूछताछ में अभियुक्तों ने अपने पूरे नेटवर्क का खुलासा किया। उन्होंने बताया कि गिरोह का एक और सदस्य, विजय शर्मा, अभी फरार है। पुलिस उसकी तलाश में जुटी है। बरामद मोबाइल फोनों और व्हाट्सएप चैट्स में फर्जी आवंटन पत्रों की पीडीएफ फाइलें, पीड़ितों के साथ चैट, और ठगी के सबूत मिले।

पुलिस की सलाह: सावधानी ही बचाव

गाजियाबाद पुलिस ने लोगों से अपील की है कि गैस एजेंसी या नौकरी के नाम पर आने वाले कॉलों पर आंख मूंदकर भरोसा न करें। किसी भी तरह के पैसे जमा करने से पहले संबंधित कंपनी से संपर्क करें। फर्जी वेबसाइट लिंक, अनजान नंबरों, और आकर्षक ऑफर्स से सावधान रहें। पुलिस ने यह भी कहा कि साइबर ठगों के खिलाफ उनकी कार्रवाई जारी रहेगी।

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