तमिलनाडु में अपराधों की बाढ़: डीएमके सरकार के कार्यकाल में कानून-व्यवस्था पर सवाल

राष्ट्रीय जजमेन्ट

पिछले चार वर्षों में मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन के नेतृत्व वाली डीएमके सरकार के तहत तमिलनाडु में हिंसक अपराधों, लक्षित हत्याओं और कानून-व्यवस्था को लेकर जनचिंता में खतरनाक इज़ाफा हुआ है। एक समय पर प्रशासनिक स्थिरता के लिए पहचाने जाने वाला राज्य अब गलत कारणों से सुर्खियों में है।साल 2024 में कई राजनीतिक हत्याएं खुलेआम हुईं, जिससे सभी दलों में रोष फैल गया। शुरुआत हुई बसपा के तमिलनाडु प्रमुख के. आर्मस्ट्रांग की निर्मम हत्या से, जिन्हें चेन्नई में सरेआम काट डाला गया – वो भी उस शहर में जो हाई-सर्विलांस के तहत है। पुलिस ने इसे आपसी रंजिश बताया, पर बसपा सुप्रीमो मायावती ने सीबीआई जांच की मांग की।इससे एक दिन पहले, एआईएडीएमके कार्यकर्ता एम. शन्मुगम की सेलम में हत्या कर दी गई थी। आरोपियों में एक डीएमके पार्षद का पति भी शामिल था, जिससे राजनीतिक संरक्षण की आशंका और गहरी हो गई।16 जुलाई को, नाम तमिझर कच्ची के मदुरै उत्तर के उप सचिव सी. बालासुब्रमण्यम की सुबह की सैर के दौरान हत्या कर दी गई। इसी तरह भाजपा के सेल्वाकुमार (सिवगंगा), कांग्रेस पार्षद के पति (कन्याकुमारी), और एआईएडीएमके के पद्मनाभन (पुडुचेरी के पास) की भी हत्या हुई।सामाजिक कार्यकर्ताओं पर हमलेमई में तिरुनेलवेली में सामाजिक कार्यकर्ता टी. फर्डिन रायन पर बर्बर हमला हुआ, क्योंकि वे अवैध निर्माण और खनन के खिलाफ आवाज उठा रहे थे। पुदुकोट्टई के जगबार अली, जो एआईएडीएमके के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के सचिव थे, को भी अवैध खनन के खिलाफ बोलने के कारण निशाना बनाया गया। एक वीडियो में उन्होंने हत्या की आशंका जताई थी, लेकिन फिर भी उन्हें एक टिपर लोरी ने कुचल दिया।रिटायर्ड पुलिस अधिकारी की हत्या ने कंपा दियामार्च 2025 में, 60 वर्षीय सेवानिवृत्त सब-इंस्पेक्टर जाहिर हुसैन बिजली की हत्या ने सबको झकझोर दिया। वे करुणानिधि के विशेष सेल में थे और वक्फ संपत्तियों की रक्षा के लिए लगातार शिकायतें कर रहे थे। हत्या से पहले उन्होंने अपनी जान को खतरा बताया था, पर फिर भी उन्हें चेन्नई की सड़कों पर मौत मिली।विपक्ष का हमला तेजइन घटनाओं के बाद एआईएडीएमके और बीजेपी ने डीएमके सरकार पर जोरदार हमला बोला। एआईएडीएमके प्रमुख एडप्पाडी के. पलानीस्वामी ने पुलिस को अधिक स्वतंत्रता देने की मांग की, वहीं भाजपा के पूर्व राज्य अध्यक्ष के. अन्नामलाई ने सरकार पर “असामाजिक तत्वों को पनपने देने” का आरोप लगाया।अपराध के आंकड़े क्या कहते हैं?जनवरी से जून तक हर साल औसतन 4 हत्याएं रोज़ हो रही हैं।2020 में 770 हत्याएं2021 में 7742022 में 8162023 में 7772024 में 778हालांकि आंकड़ों में भारी उछाल नहीं दिखता, पर घटनाओं की निर्भीकता और सार्वजनिक स्थानों में हुई हत्याएं पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल उठा रही हैं।महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराध में उछालमहिलाओं के खिलाफ अपराध में चिंताजनक वृद्धि दर्ज की गई है:2021 में महिलाओं और बच्चों पर अपराध में 16% की बढ़ोतरी (2020 की तुलना में)POCSO (बच्चों के खिलाफ अपराध) केस 2020 में 3,090 से बढ़कर 2021 में 4,469 हुए2023 की तुलना में 2024 में यौन हमले के मामलों में 16% की बढ़ोतरीघरेलू हिंसा के मामले 21.2% बढ़ेकुछ चौंकाने वाली घटनाएं:मन्नापरै में स्कूली छात्रा से बलात्कारकटपाडी में गर्भवती महिला को चलती ट्रेन से धक्कातिरुपत्तूर में पंचायत अधिकारी की पत्नी की हत्याइन घटनाओं ने राज्य भर में आक्रोश पैदा कर दिया और महिलाओं की सुरक्षा पर गहरी चिंता जताई जा रही है।युवा पीढ़ी में नशे की लत2024 में 1.42 लाख नशीली टैबलेट्स जब्त हुईं, जो 2023 की तुलना में तीन गुना ज्यादा हैं (2023 में 39,910 टैबलेट्स)।नशीले पदार्थों में दवाइयों का चलन बढ़ा है – जिनमें पेनकिलर्स और एंटी-एंग्जायटी मेडिकेशन शामिल हैं।पारंपरिक ड्रग्स (जैसे गांजा) की बरामदगी थोड़ी घटी है, लेकिन नशे की प्रवृत्ति तेज़ी से रूप बदल रही है, और पुलिस पीछे छूट रही है।कच्ची शराब और घरेलू हिंसातमिलनाडु में कच्ची शराब से जुड़ी मौतों का इतिहास पुराना है:2020 में 20 मौतें2021 में 62022 में 16DMK का दावा “शून्य हूच त्रासदी” का झूठा साबित हुआ है। इसके अलावा, शराब और ड्रग्स से जुड़ी घरेलू हिंसा में भी बढ़ोतरी हुई है, लेकिन पुनर्वास और रोकथाम के प्रयास नाकाफी हैं।वादों और हकीकत के बीच फासला2021 के विधानसभा चुनाव में डीएमके ने “महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों के लिए सुरक्षित, अपराधमुक्त राज्य” का वादा किया था। 2022 में सीएम स्टालिन ने कहा था कि “कानून तोड़ने वालों से लोहे की तरह सख्ती से निपटा जाएगा।” लेकिन हालिया घटनाओं को देखकर सवाल उठता है – वो ‘लोहे की मुट्ठी’ आखिर गई कहां?हत्या, नशे की लत, महिलाओं पर हमले और राजनीतिक हत्याएं – ये सब मिलकर एक गंभीर तस्वीर पेश करते हैं। सरकार चाहे इन अपराधों को “निजी दुश्मनी” बताकर किनारा कर ले, पर जनता की नज़र में भरोसे की दीवार दरक चुकी है। चुनाव नज़दीक हैं, और स्टालिन सरकार को अब सिर्फ़ बैलेट बॉक्स नहीं, बल्कि जनता की अदालत में भी अग्निपरीक्षा देनी होगी।

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