‘गाजा पर ‘शर्मनाक चुप्पी’ नैतिक कायरता की पराकाष्ठा’, सोनिया गांधी का प्रधानमंत्री मोदी पर तीखा वार

राष्ट्रीय जजमेंट

आवश्यक मानवीय सहायता पहुँचाने के लिए लड़ाई में “विराम” के बावजूद, गाजा में इज़राइली गोलीबारी में कम से कम 92 लोग मारे गए हैं, जिनमें 41 सहायता चाहने वाले भी शामिल हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प और ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीर स्टारमर ने गाजा में “भयावह दृश्यों” पर चर्चा की और इस बात पर सहमत हुए कि इस मानवीय आपदा को समाप्त करने के लिए “तत्काल कार्रवाई” की आवश्यकता है। वहीं दूसरी तरफ गाजा पर भारत में विपक्षी दल राजनीतिक तौर पर पीएम मोदी को घेरने की कोशिश कर रहा है। कांग्रेस संसदीय दल की प्रमुख सोनिया गांधी ने मंगलवार को आरोप लगाया कि गाजा पर इजराइल के जुल्म को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की शर्मनाक चुप्पी निराशाजनक और नैतिक कायरता की पराकाष्ठा है। सोनिया गांधी ने एक हिंदी दैनिक के लिए लिखे गए एक लेख में कहा कि अब समय आ गया है कि प्रधानमंत्री स्पष्ट और साहसिक शब्दों में उस विरासत की ओर से जोरदार आवाज उठाएं, जिसका प्रतिनिधित्व भारत करता आया है।उन्होंने लेख में कहा, अक्टूबर, 2023 को इजराइल में निर्दोष पुरुषों, महिलाओं और बच्चों पर हमास द्वारा किए गए बर्बर हमलों या उसके बाद इजराइली लोगों को लगातार बंधक बनाए रखने को कोई भी उचित नहीं ठहरा सकता।’’ उन्होंने कहा, इसकी बार-बार और बिना किसी शर्त निंदा की जानी चाहिए लेकिन अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सदस्य और उससे भी बढ़कर एक इंसान होने के नाते यह स्वीकारना हमारी जिम्मेदारी है कि गाजा की जनता पर इजराइली सरकार की प्रतिक्रिया और प्रतिशोध का तरीका न केवल उग्र रहा है बल्कि यह पूरी तरह आपराधिक भी है।गांधी ने इस बात का उल्लेख किया कि पिछले लगभग दो वर्षों में 55,000 से अधिक फलस्तीनी नागरिक मारे जा चुके हैं, जिनमें 17,000 बच्चे शामिल हैं। उन्होंने कहा, फ्रांस ने फलस्तीनी राष्ट्र को मान्यता देने का फैसला किया है और ब्रिटेन, कनाडा जैसे देशों ने गाजा में आक्रामकता को बढ़ावा देने वाले इजराइली नेताओं पर प्रतिबंध लगाए हैं… इस मानवीय संकट के प्रति दुनिया भर में उभर रही वैश्विक चेतना के बीच यह एक राष्ट्रीय शर्म की बात है कि भारत इस मानवता के अपमान का मूकदर्शक बना हुआ है।कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष ने इस बात पर जोर दिया कि भारत लंबे समय से वैश्विक न्याय का प्रतीक रहा है और उसने उपनिवेशवाद के खिलाफ वैश्विक आंदोलनों को प्रेरित किया, शीत युद्ध के दौर में साम्राज्यवादी प्रभुत्व के खिलाफ आवाज उठाई और रंगभेद के खिलाफ दक्षिण अफ्रीका के अंतरराष्ट्रीय संघर्ष का नेतृत्व किया।
सोनिया गांधी ने कहा, जब निर्दोष इंसानों का निर्मम संहार हो रहा है, भारत का अपने मूल्यों से विमुख हो जाना राष्ट्रीय विवेक पर कलंक, हमारे ऐतिहासिक योगदान की उपेक्षा और हमारे संवैधानिक मूल्यों के प्रति एक कायरतापूर्ण विश्वासघात भी है। उन्होंने कहा कि राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत सरकार से अपेक्षा करते हैं कि वह ‘‘अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देने, राष्ट्रों के बीच न्यायपूर्ण संबंध बनाए रखने और अंतरराष्ट्रीय कानून एवं संधि-कर्तव्यों के प्रति सम्मान’’ के लिए प्रभावी कदम उठाए, लेकिन इजराइली कदमों के समक्ष वर्तमान सरकार की नैतिक कायरता संवैधानिक मूल्यों के प्रति कर्तव्यों की उपेक्षा के समान है।उन्होंने इस बात का उल्लेख किया, ‘‘भारत सदैव दो-राष्ट्र समाधान और इजराइल एवं फलस्तीन के बीच न्यायसंगत शांति का समर्थक रहा है। इंदिरा गांधी के नेतृत्व में 1974 में भारत पहला गैर-अरब देश बना, जिसने फलस्तीन मुक्ति संगठन (पीएलओ) को फलस्तीनी जनता के एकमात्र और वैध प्रतिनिधि के रूप में मान्यता दी। भारत 1988 में उन शुरुआती देशों में था, जिन्होंने फलस्तीन को आधिकारिक मान्यता प्रदान की।’’सोनिया गांधी ने कहा, ‘‘इजराइल द्वारा गाजा के लोगों पर लगातार किए जा रहे जुल्मों के बीच प्रधानमंत्री मोदी की शर्मनाक चुप्पी बेहद निराशाजनक है। यह नैतिक कायरता की पराकाष्ठा है।’’ उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि मोदी स्पष्ट और साहसिक शब्दों में उस विरासत की ओर से जोरदार आवाज उठाएं, जिसका प्रतिनिधित्व भारत करता आया है।उन्होंने कहा, ‘‘आज समूची मानवता के सामूहिक विवेक को झकझोरने वाले इस मुद्दे पर ‘ग्लोबल साउथ’ फिर से भारत के नेतृत्व की प्रतीक्षा कर रहा है।’’ ‘ग्लोबल साउथ शब्द का इस्तेमाल आम तौर पर आर्थिक रूप से कम विकसित देशों को संदर्भित करने के लिए किया जाता है।

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