दादी की बीमारी ने जगा दी सेवा की भावना : न्यूरोसाइकियाट्रिस्ट डॉ. शेषांक गंगवार

हर तनाव डिप्रेशन नहीं होता, मानसिक स्वास्थ्य को लेकर फैली भ्रांतियों को तोड़ रहे हैं : डॉ. शेषांक

राष्ट्रीय जजमेंट (संवाददाता)

शाहजहांपुर। हर मिडिल क्लास परिवार का सपना होता है कि उनका बच्चा डॉक्टर या इंजीनियर बने। लेकिन मेरे लिए यह सपना सिर्फ करियर नहीं, एक जिम्मेदारी थी। यह कहना है शाहजहांपुर के न्यूरोसाइकियाट्रिस्ट डॉ. शेषांक गंगवार का, जिनके डॉक्टर बनने की प्रेरणा उन्हें अपने पिता और दादी से मिली। डॉ. शेषांक बताते हैं कि उनकी दादी अक्सर बीमार रहती थीं और घर में कई बार यह बात निकलती थी कि अगर परिवार में कोई डॉक्टर होता तो इलाज में तकलीफ कम होती। यही बात उनके मन में गहराई तक उतर गई और बचपन से ही उन्होंने तय कर लिया कि वह डॉक्टर बनेंगे और बीमार शरीर के साथ-साथ टूटते हुए मन का भी इलाज करेंगे।बचपन के उस भाव ने ही उन्हें मनोचिकित्सा की ओर मोड़ा। आज वे न सिर्फ मानसिक रोगों का इलाज कर रहे हैं, बल्कि समाज में जागरूकता फैलाने का भी काम कर रहे हैं।उन्होंने एमबीबीएस और एमडी की पढ़ाई अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से की। वर्तमान में वह मेडिकल कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं और कच्चा कटरा में स्थित अपने क्लीनिक पर मानसिक रोग विशेषज्ञ के रूप में सेवाएं दे रहे हैं। नशा बनता है मानसिक रोगों की सीधी वजह : डॉ. गंगवार ने बताया कि कोई भी व्यक्ति अगर किसी भी प्रकार का नशा करता है तो वह मानसिक रोग से पीड़ित जरूर होगा। चाहे वह शराब हो, तंबाकू हो या अन्य कोई नशीला पदार्थ, इसका सीधा असर दिमाग पर पड़ता है। उन्होंने कहा कि कई बार देखा गया है कि जो लोग लंबे समय से नशा करते हैं वे अचानक व्यवहार में बदलाव दिखाने लगते हैं, गुस्सा करने लगते हैं या अपने आसपास के लोगों से कटने लगते हैं। यह मानसिक रोग की शुरुआत हो सकती है। भूत-प्रेत की अवधारणा में फंसते हैं लोग : उन्होंने बताया कि आज भी लोग मानसिक रोगों को लेकर भ्रम में रहते हैं। पहले वे झाड़ फूंक, ओझा, बाबा या मौलाना के पास जाते हैं और जब राहत नहीं मिलती तो वहां से यही कहा जाता है कि अब आपका भूत उतर गया, अब आप डॉक्टर के पास जाइए। तब मरीज हमारे पास आते हैं और तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। उन्होंने कहा कि पहले लोग हमारे पास आने में घबराते थे और यह मानते थे कि हम भूत-प्रेत से जुड़ी बीमारियों का इलाज करते हैं। लेकिन अब समाज में जागरूकता पहले से कहीं ज्यादा है। हर तनाव डिप्रेशन नहीं होता : डॉ. गंगवार ने कहा कि आजकल छोटी-छोटी समस्याओं को भी लोग डिप्रेशन मान लेते हैं जबकि ऐसा नहीं है। अगर कोई तनाव कुछ समय के लिए है या किसी एक घटना से जुड़ा है तो वह सामान्य मानसिक प्रतिक्रिया है। डिप्रेशन तब माना जाता है जब यह भावनात्मक स्थिति लगातार बनी रहे और व्यक्ति की सोच, व्यवहार और दिनचर्या पर असर डालने लगे। उन्होंने कहा कि जब तक कोई मानसिक परेशानी लगातार न चल रही हो तब तक उसे डिप्रेशन नहीं माना जाना चाहिए।ओसीडी को हल्के में न लें : उन्होंने बताया कि शाहजहांपुर में ओसीडी यानी ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर के मरीज लगातार बढ़ रहे हैं। बार-बार हाथ धोना, पानी बहाना या एक ही काम को बार-बार करना इसके सामान्य लक्षण हैं लेकिन लोग इसे गंभीरता से नहीं लेते।डॉक्टर डे पर नि:शुल्क कैंप लगाकर की सेवा : डॉक्टर डे के अवसर पर डॉ. शेषांक गंगवार ने अपने क्लीनिक पर नि:शुल्क चिकित्सा शिविर लगाकर मानसिक रोगियों की जांच की और उन्हें आवश्यक परामर्श दिया। इस अवसर पर उन्होंने मरीजों को मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूक किया और यह संदेश दिया कि मानसिक रोग भी उतने ही वास्तविक हैं जितने शारीरिक रोग। सही समय पर इलाज हो तो इनका पूरी तरह इलाज संभव है।

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