प्रस्तावना में कैसे जोड़ा गया धर्मनिरपेक्ष-समाजवादी शब्द

राष्ट्रीय जजमेंट

हम सब भारत के संविधान की कसमें तो खूब खाते हैं या लोगों को खाते हुए सुनते हैं। पर क्या आपने संविधान देखा है? अगर कोई फोटो वगैरह में देखा भी हो तो एक चीज तो आपको पता ही होगी की अपना संविधान दुनिया का सबसे लंबा लिखित संविधान है। सोने पर सुहागा ये कि पूरा संविधान हिंदी और अंग्रेजी में लिखा गया। हाथों से कैरीग्राफ किया गया, न कोई प्रिटिंग हुई और न कोई टाइपिंग। इस संविधान के पहले पन्ने पर संविधान की आत्मा है। यानी संविधान की प्रस्तावना। वहीं प्रस्तावना जो ‘हम भारत के लोग’ से शुरू होती है। इस पन्ने की खासियत ये है कि संविधान में तो संशोधन हुआ करते हैं। लेकिन इस पन्ने पर लिखी बातें को नहीं बदला जा सकता। पर हुआ तो ऐसा भी है। इस पन्ने में भी 1976 में कुछ जोड़ा गया। तब 42वें संविधान संशोधन के जरिये प्रस्तावना में समाजवादी, धर्मनिरपेक्षता और राष्ट्र की अखंडता जैसे शब्द जोड़ दिए गए थे।
संविधान सभा में बहस के दौरान केटी शाह और ब्रजेश्वर प्रसाद जैसे सदस्यों ने इन शब्दों को प्रस्तावना में जोड़ने की मांग उठाई थी। हालाँकि, डॉ बीआर अम्बेडकर ने तर्क दिया: “राज्य की नीति क्या होनी चाहिए, समाज को उसके सामाजिक और आर्थिक पक्ष में कैसे संगठित किया जाना चाहिए, यह ऐसे मामले हैं जिन्हें लोगों को समय और परिस्थितियों के अनुसार स्वयं तय करना होगा। इसे संविधान में ही निर्धारित नहीं किया जा सकता क्योंकि यह पूरी तरह से लोकतंत्र को नष्ट कर देगा। अपनी याचिका में डॉ स्वामी ने अंबेडकर के वक्तव्यों का उल्लेख किया है। अम्बेडकर ने यह भी कहा, “मेरा तर्क यह है कि इस संशोधन में जो सुझाव दिया गया है वह पहले से ही प्रस्तावना के मसौदे में निहित है”। दरअसल, धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद की पुष्टि करने वाले कई सिद्धांत मूल रूप से संविधान में निहित थे, जैसे कि राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों में जो सरकार को उसके कार्यों में मार्गदर्शन करने के लिए है।
प्रस्तावना का उद्देश्य क्या है?
हमारे संविधान के प्रस्तावना के साथ 448 अनुच्छेद हैं। 12 अनुसूचियां और पांच परिशिष्ट हैं। प्रस्तावना का मूल विचार अमेरिका के संविधान से लिया गया है। जिसे दुनिया का सबसे पुराना लिखित संविधान माना जाता है। संविधान की प्रस्तावना को इसकी आत्मा कहा जाता है। इसमें क्या लिखा है-
”हम भारत के लोग, भारत को एक संप्रभुत्व, संपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त कराने के लिए तथा उन सब में व्यक्ति कि गरिमा और राष्ट्र की एकता व अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर 1949 को संविधान को अधिनियमित और आत्मर्पित करते हैं।”
इंदिरा गांधी ने धर्मनिरपेक्ष और समाजवाद शब्द को जोड़ा
इस प्रस्तावना में संविधान में समाहित जितने भी मूल और आदर्श हैं उनको शामिल किया गया है। लेकिन यहां इस्तेमाल किए गए शब्दों के अर्थ भी आपको समझा देते हैं। हम भारत के लोग का मतलब संविधान जिनसे बना है, जो इस संविधान के स्रोत हैं। संप्रभु यानी ऐसा देश जो दूसरे की प्रभुता से मुक्त हो और अपने सभी निर्णय लेने के लिए पूर्णत: स्वतंत्र हो। 1976 में इंदिरा गांधी सरकार द्वारा पेश किए गए 42वें संवैधानिक संशोधन के तहत संविधान की प्रस्तावना में समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष शब्द शामिल किए गए थे। इस संशोधन ने प्रस्तावना में भारत के विवरण को संप्रभु, लोकतांत्रिक गणराज्यसे बदलकर कर दिया। स्वामी ने अपनी याचिका में दलील दी है कि प्रस्तावना को बदला, संशोधित या निरस्त नहीं किया जा सकता है।

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