केंद्र और मध्य प्रदेश सरकार के विभागों के बीच समन्वय की कमी सामने आई

राष्ट्रीय जजमेंट

नयी दिल्ली । मध्य प्रदेश के महालेखाकार की एक अंकेक्षण रिपोर्ट ने कुनो राष्ट्रीय उद्यान में चीता परियोजना के प्रबंधन पर चिंता जताई है, जिसमें केंद्र और राज्य सरकार के विभागों के बीच समन्वय की कमी को उजागर किया गया है। इस रिपोर्ट में यह भी खुलासा हुआ कि अफ्रीका से चीतों के आगमन के बावजूद, 2020-2030 की अवधि के लिए कुनो राष्ट्रीय उद्यान की प्रबंधन योजना में चीतों को पुनः लाने का कोई उल्लेख नहीं किया गया है। इन चिंताओं के बारे में पूछे जाने पर मुख्य वन संरक्षक और शेर परियोजना के निदेशक उत्तम शर्मा ने कहा कि उन्होंने लेखा परीक्षकों को जवाब दे दिया है, लेकिन उन्होंने विशिष्ट विवरण साझा करने से इनकार कर दिया।

उत्तम शर्मा ने कहा,‘‘यह एक नियमित अभ्यास है जो कई चरणों में किया जाता है। यदि आवश्यक हुआ तो संपूर्ण प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही कोई कार्रवाई की जाएगी।’’ अगस्त 2019 से नवंबर 2023 की अवधि को कवर करने वाले अंकेक्षण में पाया गया कि वन कर्मी और कुनो वन्यजीव प्रभाग चीतों को पुनः लाने की परियोजना में स्थान के चयन अथवा चीता पुनःप्रवेश अध्ययन में शामिल नहीं थे। सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत प्राप्त रिपोर्ट में कहा गया है कि कुनो अभयारण्य को मूल रूप से एशियाई शेरों के दूसरे आवास के रूप में पहचाना गया था।

रिपोर्ट के मुताबिक हालांकि, नवंबर 2023 तक एशियाई शेरों को फिर से लाने के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया है। इंटरनेशनल बिग कैट अलायंस (आईबीसीए) के महानिदेशक एस पी यादव ने पिछले सप्ताह पीटीआई- को बताया कि गुजरात में एशियाई शेरों की आबादी के बीच प्राकृतिक भौगोलिक अलगाव हो रहा है और फिलहाल उन्हें स्थानांतरित करने की कोई आवश्यकता नहीं है।

अंकेक्षण रिपोर्ट में कहा गया, ‘‘इस प्रबंधन योजना में चीतों का कोई उल्लेख नहीं था… इसलिए, 2021-22 से 2023-24 (जनवरी 2024 तक) तक चीता परियोजना पर किया गया 44.14 करोड़ रुपये का व्यय अनुमोदित प्रबंधन योजना के अनुरूप नहीं था।’’ रिपोर्ट के अनुसार, लेखा परीक्षकों को कोई भी ऐसा रिकार्ड नहीं मिला जिससे यह स्पष्ट हो सके कि किसके निर्देश पर चीता पुनः स्थापित करने का काम शुरू हुआ। उच्चतम न्यायालय के 28 जनवरी, 2020 के निर्देशों के अनुसार, अफ्रीकी चीतों के लिए सबसे उपयुक्त स्थान का चयन करने के लिए तीन सदस्यीय समिति का गठन किया गया था। इस समिति को हर चार महीने में अपनी रिपोर्ट शीर्ष अदालत को सौंपनी थी।

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