सातवें चरण में मोदी और उनके तीन मंत्रियों के भाग्य का होगा फैसला

राष्ट्रीय जजमेंट न्यूज़

लखनऊ। उत्तर प्रदेश में सातवें चरण के मतदान का काउंटडाउन शुरू हो गया है। 1 जून को अंतिम चरण 13 सीटों के लिए वोट पड़ेंगे। लोकसभा की 13 सीट के लिए का रण बेहद खास है। इस चरण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत उनके तीन मंत्रियों के भी भाग्य का फैसला होना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जहां खुद काशी से चुनाव मैदान में हैं, वहीं उनकी कैबिनेट के सहयोगी डॉ. महेंद्र नाथ पांडेय चंदौली से, तो भाजपा गठबंधन दल की सहयोगी, केंद्रीय मंत्री और अपना दल की अनुप्रिया पटेल मिर्जापुर से भाग्य आजमा रही हैं। राज्यमंत्री पंकज चौधरी महराजगंज से चुनाव मैदान में हैं। जानकारों का मानना है कि वाराणसी में तो चुनाव जीत के अंतर को लेकर हो रहा है, जबकि तीनों मंत्रियों के सामने कठिन चुनौती है। गोरखपुर से अभिनेता रवि किशन दूसरी बार मैदान में हैं। मुख्यमंत्री का जिला होने के कारण इस सीट पर भी लोगों की निगाहें हैं। इस चरण में चर्चित सीट गाजीपुर में भी मतदान होगा। गाजीपुर को माफिया मुख्तार अंसारी का गढ़ माना जाता है। यहां से मुख्तार के बड़े भाई और मौजूदा सांसद अफजाल अंसारी सपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। भाजपा की लहर के बावजूद 2019 में अफजाल बसपा के टिकट पर जीते थे। भाजपा ने स्थानीय पारसनाथ राय को टिकट दिया है। मुख्तार की मौत के बाद यहां सियासी आंकड़े काफी बदल गए हैं। वाराणसी गोरखपुर के अलावा कम मार्जिन से जीती सीटों पर भी बीजेपी के सामने कड़ी चुनौती है।एनडीए के पिछड़े नेताओं की अग्निपरीक्षा अन्य चरणों की तरह अंतिम चरण में भी विकास के मुद्दे से अधिक जातीय समीकरणों के आधार पर चुनाव होने के आसार दिख रहे हैं। इसलिए भाजपा के सहयोगी पिछड़े चेहरे अपना दल (एस) की मुखिया अनुप्रिया पटेल, सुभासपा अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर और निषाद पार्टी के प्रमुख संजय निषाद की साख भी कसौटी पर है। सबसे बड़ी चुनौती ओमप्रकाश राजभर के सामने है, क्योंकि उनके बेटे अरविंद राजभर 2019 में भाजपा की हारी हुई घोसी सीट से मैदान में हैं। सपा के राजीव राय और इसी सीट से सांसद रहे बसपा के बालकृष्ण चौहान राजभर को कड़ी टक्कर देते दिख रहे हैं। ऐसे में इस सीट को जीतना एनडीए के लिए करो या मरो वाली स्थिति है। पूर्वी यूपी में जातियों का चक्रव्यूह ऐसा है कि कोई भी पार्टी चाहकर भी अपने कोर वोटरों को नहीं सहेज सकती। दिक्कत यह है कि किसी भी पार्टी का कोर वोटर तभी तक उसका भक्त रहता है, जब तक उनकी जाति का कैंडिडेट उसकी पार्टी से है। अगर पार्टी का कैंडिडेट किसी और जाति से और मुकाबले में किसी दल से अपनी जाति का कैंडिडेट है तो कोर वोटर का भी मन बदल जाता है।

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